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गुरुवार, फ़रवरी 22

रामनाम (पार्ट - 02)

पार्ट - 2 (कल का अनुसंधान)



शिवजी ने तीसरा उपाय आजमाया; विषधर नाग को गले में धारण कर लिया। भोलेनाथ ने सोचा की विषधर नाग मेरे गले में स्थित सागरवाले कातिल विष को ग्रहण कर लेंगे। सरल भाषा में समझें तो विष का भोग लगा लेंगे। विषैले नाग को भला विष से कैसा भय? मगर भोलेनाथ ने जैसा सोचा वैसा हुआ नहीं। विषधर नाग की भी हिंमत नहीं हुयी कि वो हलाहल विष का भोग लगा लें, उस को भोजन बना लें।
इस तरह चंद्रमा, गंगा जी और विषधर नाग ने भोलेनाथ के गले से लेकर मस्तक पर स्थान तो प्राप्त कर लिया, लेकिन उन के संकट का समाधान नहीं किया।
भोलेनाथ ने फिर नया उपाय सोचा। वे वाराणसी नगर में बसते थे। वाराणसी का वातावरण गरम रहता है, सो भोलेनाथ ने सोचा 'चलो, कैलाश चला जाये, वहां का वातावरण शीतल है। उस शीतलता से शरीर में जो जलन है। वो शांत हो जाये। ये सोचकर भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर चले गये। वहीं बस गये। कैलाश हिमाच्छादित स्थान है। वहां तो बरफ ही बरफ है। अति शीतल स्थान है। ठंडा प्रदेश है। वहां जाने से तो शरीर में लगी जलन अवश्य शांत होगी। सो भोलेनाथ वहां जाकर बस गये। मगर, फिर भी जलन शांत नहीं हुयी।
एक से बेहतर एक समर्थ उपाय आजमाने के बाद भी भोलेनाथ की समस्या का निराकरण नहीं हुआ। शरीर की जलन से मुक्ति नहीं मिली।
अब क्या किया जाये?
भोलेनाथ की ये दशा देखकर पार्वतीमाता हंसने लगे। भोलेनाथ देवी के हास्य को समझ न सके, इसलिये पूछा 'देवी, आप हंस क्यों रही है?
भगवती पार्वती ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया।
'भगवान्,! आप के शरीर में जो अगन लगी है। मुझे भी उस आंच का असर हो रहा है, क्यों कि मैं आप के वामांग में उपस्थित हूँ । आपने जो उपाय आजमाये। वे भी मुझे मालूम है। परंतु प्रभु समुद्रमंथन से प्राप्त हलाहल विष के शमन के लिये किये गये ये उपाय सार्थक साबित नहीं हुये हैं। ये उपाय उस विष की असर की तीव्रता के सामने बहुत मामूली है।
'देवी, आप की बात सच है, लेकिन इस बात से आप हंसी क्यों?'
'प्रभु, क्षमा करना, मुझे हंसी इसलिये आयी कि चाहे केसा भी हलाहल विष हो। उस का उपाय एक क्षण में हो सकता है; और वो समर्थ उपाय आप के पास है। आप सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान होकर भी उसे ना आजमाकर एसे मामूली उपाय आजमा रहे हैं।
भोलेनाथ ने पूछा 'देवी, आप कौन से उपाय की बात कर रही हैं?'
पार्वती ने कहा - प्रभु, आप वो उपाय जानते हैं और आपने समग्र विश्व को कयी बार बताया है।'
ये सुनकर भोलेनाथ के नेत्र बंद हुये। नाभि में से उत्पन्न हुआ नाद कंठ द्वारा वाणी बनकर बहने लगा, राम ! राम ! राम ! राम ! राम !
और एक क्षण में भोलेनाथ के तन में लगी जलन शांत हो गयी। भोलेनाथ प्रगाढ़ समाधि में डूब गये। शरीर की अगन और मन के दहन का शमन करने का सर्वश्रेष्ठ और अचूक यानि रामबाण उपाय है,
राम का नाम
राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम
(प्रकरण - 2 रामनाम समाप्त)

भाणदेव लिखित गुजराती पुस्तक 'जीवन और धर्म' के बाकी पेरेग्राफ का अनुवाद
अनुवादक - महेश सोनी

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