राख(एशेज प्रतिष्ठा का प्रतीक)
मैंने आज सुबह एक मुक्तक पेश किया था। जिस में ये पंक्तियां है कि मैंने आज सुबह एक मुक्तक पेश किया था। जिस में ये पंक्तियां है कि जब समय बलवान होता है. राख की भी साख होती है। यूं तो ये इस संदर्भ में लिखी है. समय साथ देता है तब मामूली से मामूली आदमी की भी कदर होती है। लेकिन क्रिकेट के इतिहास में एसी घटना घट चुकी है। जो अक्षरः राख की साख को सिद्ध करती है। क्रिकेट के शौकीन जानते होंगे। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के बीच खेली जाने वाली टैस्ट मैच सीरीज को एशेज सीरीज कहते हैं। एशेज क्या होती है? राख को अंग्रेजी में एशेज कहते हैं।
१८८१-८२ के आसपास इंग्लैंड आस्ट्रेलिया से मैच हार गया था। तब एक अंग्रेजी अखबार ने समाचार छापे कि कल इंग्लिश क्रिकेट की मौत हो गयी है। इस के अंतिम संस्कार के बाद इस की राख आस्ट्रेलिया को दे दी जाएगी। जो उसे अपने साथ ले जाएंगे।
घटना क्रम यहीं नहीं रुका। उस के बाद जो सीरीज हुयी। पूरे देश में उस राख को वापस लाने के लिये का वातावरण बन गया।
उस के बाद की सीरीज आस्ट्रेलिया में खेली गयी। इंग्लैंड ने वो सीरीज जीत ली। तब आखिरी टैस्ट मैच के बाद मेल्बर्न में कुछ आस्ट्रेलियाई महिलाओं ने बेल्स जला कर उस की राख को एक थैली में डाल कर अंग्रेज कप्तान को सीरीज को जीतने के लिये ट्रॉफी के रुप में दे दी।
इंग्लैंड के अखबारों ने समाचार छापे कि इंग्लैंड का सम्मान लौट आया।
इस तरह बेल्स की राख यानि एशेज(राख को अंग्रेजी में एशेज कहते हैं) दो देशों के बीच प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया।
उस के बाद आज तक(बीच में खेली गयी एक दो सीरीज को छोड़कर) एशेज खेली जा रही है।
दोनों देशों का हर खिलाड़ी एशेज जीतने में अपना योगदान देना चाहता है। क्यों? क्यों कि उस एशेज यानि राख की भी अपनी एक साख है, शान है, इज्जत है, रुतबा है। उसी को ध्यान में रखकर ये पंक्तियां लिखी है कि
जब समय बलवान होता है
राख की भी साख होती है
कुमार अहमदाबादी
(फोटो में उसी मैच के समाचार हैं) होता है. राख की भी साख होती है*। यूं तो ये इस संदर्भ में लिखी है. समय साथ देता है तब मामूली से मामूली आदमी की भी कदर होती है। लेकिन क्रिकेट के इतिहास में एसी घटना घट चुकी है। जो अक्षरः राख की साख को सिद्ध करती है। क्रिकेट के शौकीन जानते होंगे। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के बीच खेली जाने वाली टैस्ट मैच सीरीज को एशेज सीरीज कहते हैं। एशेज क्या होती है? राख को अंग्रेजी में एशेज कहते हैं।
१८८१-८२ के आसपास इंग्लैंड आस्ट्रेलिया से मैच हार गया था। तब एक अंग्रेजी अखबार ने समाचार छापे कि कल इंग्लिश क्रिकेट की मौत हो गयी है। इस के अंतिम संस्कार के बाद इस की राख आस्ट्रेलिया को दे दी जाएगी। जो उसे अपने साथ ले जाएंगे।
घटना क्रम यहीं नहीं रुका। उस के बाद जो सीरीज हुयी। पूरे देश में उस राख को वापस लाने के लिये का वातावरण बन गया।
उस के बाद की सीरीज आस्ट्रेलिया में खेली गयी। इंग्लैंड ने वो सीरीज जीत ली। तब आखिरी टैस्ट मैच के बाद मेल्बर्न में कुछ आस्ट्रेलियाई महिलाओं ने बेल्स जला कर उस की राख को एक थैली में डाल कर अंग्रेज कप्तान को सीरीज को जीतने के लिये ट्रॉफी के रुप में दे दी।
इंग्लैंड के अखबारों ने समाचार छापे कि इंग्लैंड का सम्मान लौट आया।
इस तरह बेल्स की राख यानि एशेज(राख को अंग्रेजी में एशेज कहते हैं) दो देशों के बीच प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया।
उस के बाद आज तक(बीच में खेली गयी एक दो सीरीज को छोड़कर) एशेज खेली जा रही है।
दोनों देशों का हर खिलाड़ी एशेज जीतने में अपना योगदान देना चाहता है। क्यों? क्यों कि उस एशेज यानि राख की भी अपनी एक साख है, शान है, इज्जत है, रुतबा है। उसी को ध्यान में रखकर ये पंक्तियां लिखी है कि
जब समय बलवान होता है
राख की भी साख होती है
कुमार अहमदाबादी
(फोटो में उसी मैच के समाचार हैं)
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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बुधवार, फ़रवरी 21
राख की साख
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