અવિજ્ઞેય પ્રેમ વન
(મુક્તક)
મંજુ ભાષિણી છંદ
લલગાલગા, લલલગા, લગાલગા
ભર યૌવને નજરમાં ગુલાબ છે
કવનો અને હૃદયમાં ગુલાબ છે
મન, શું કહું મન વિશે, કહી દઉં
અવિજ્ઞેય પ્રેમ વનમાં ગુલાબ છે
અભણ અમદાવાદી
અવિજ્ઞેય = જાણી ન શકાય એવું
અભણ અમદાવાદી
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है कुमार अहमदाबादी
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