आवासः क्रियतां गांगे पापहारिणि वारिणी
स्तनद्वये तरुण्या वा मनोहारिणि वारिणी।। ३८
या तो पाप हरनेवाली गंगा के किनारे पर बसना चाहिये; या फिर तरुणी या रसिक स्त्री के दोनों स्तनों में बसना चाहिये।
श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक के मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गुजराती में किये गये भावानुवाद का हिन्दी भावानुवाद
हिन्दी अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
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