रामनाम
पार्ट - 1
देवों और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिये साथ मिलकर समुद्रमंथन का प्रारंभ किया था। समुद्र में कयी औषधियां डाली गयी थी। मंदराचल को घोटा (यानि दही या छाछ बिलोने का साधन) बनाया गया। भगवान श्री विष्णु ने कच्छपावतार धारण कर के मंदराचल को आधार दिया। वासुकी नाग को बिलोने की रस्सी बनाया गया। वासुकी के मुख की ओर से असुरों ने और पूंछ की ओर से देवों ने ये कार्य आरंभ किया।
देवों के लिये परमात्मा का विधान भी गहन होता है। अमृत के लिये मंथन किया था। लेकिन नीकला हलाहल विष! प्रश्न उपस्थित हुआ की अब इस का क्या करें? जब कष्ट आता है तब सब देवाधिदेव महादेव के पास जाते हैं; सो दोनों भोलेनाथ के पास गये। दोनों ने भोलेनाथ से विनती कि वे इस महाआपत्ति से सृष्टि को बचा लें: क्यों कि कातिल हलाहल विष के कारण सृष्टि के अस्तित्व ही जोखिम खडा हो चुका था।
शिवजी तो आशुतोष यानि तुरंत प्रसन्न होनेवाले हैं, क्यों कि वो भोलेनाथ हैं। सृष्टि को बचाने के लिये, देवों और असुरों का संकट दूर करने के लिये वे हलाहल पीने के लिये तैयार हो गये। भोलेनाथ ने विषपान तो कर लिया। लेकिन ना तो उसे पेट तक पहुंचने दिया: ना ही वमन किया। उन्होंने हलाहल को कंठ में धारण कर लिया। लेकिन विष तो विष था। भोलेनाथ के तन में जलन होने लगी। देव, असुर व मानव समस्या के समाधान के लिये महादेव के पास जा सकते हैं। लेकिन महादेव किस के पास जाकर समस्या का समाधान पूछें? उन्हें तो अपनी समस्या का समाधान स्वयं ही करना था।
हलाहल विष के असर के कारण हो रही जलन से तन को मुक्ति कैसे दिलवाई जाये? भोलेनाथ ने उपाय ढुंढ लिया। उन्हों ने चंद्रमा को मस्तक पर धारण कर लिया। चंद्रमा से निरंतर अमृत झरता है। भोलेनाथ ने सोचा था की चंद्र के अमृतस्त्राव से बदन को जलन से मुक्ति मिलेगी। लेकिन वैसा हुआ नहीं। विष आखिर हलाहल था। ऊस पर अमृतस्त्राव भी असर कर ना सका।
अब क्या किया जाये?
भोलेनाथ ने एक और उपाय सोचा। उन्होंने मस्तक पर गंगाजी को धारण कर लिया। गंगाजल आगन को शांत करता है। भोलेनाथ ने सोचा कि गंगाजल विष की अगन को दूर कर देगा। लेकिन एसा हुआ नहीं।
अब कौन सा उपाय किया जाये?
(अनुवाद जारी है)
जीवन और धर्म (लेखक- भाणदेव) के प्रकरण-2 रामनाम के पहले पांच पेरेग्राफ का अनुवाद
बाकी पेरेग्राफ का अनुवाद कल पेश करुंगा।
अनुवादक - महेश सोनी
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