क्रांति की लौ को जलानेवाली है
हाथ में बंदूक आनेवाली है
भूख दो रोटी की थी जो ना मिली
रक्तगंगा वो बहानेवाली है
ये पतीली खाली थी एवं है पर
दाल पूरी बस'ब आनेवाली है (बस अब)
रोटी मजदूरों के हक की छीन मत
देश का कल ये सजानेवाली है
भूख को बस लक्ष्य दिखता है 'कुमार'
भूख अब मंजिल को पानेवाली है
कुमार अहमदाबादी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें