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सोमवार, फ़रवरी 7

सवायी बेटी

अपने कक्ष में देवी सरस्वती गुमसुम और उदास बैठी है। सितार को उन्होंने एक तरफ संभालकर रख दिया है। बहुत मुश्किल से अपने आसुओं को रोक रही है। एसे में नारायण नारायण का उच्चारण करते हुये नारदमुनि प्रवेश करते हैं। देवी सरस्वती नारद मुनि को मौन होने के लिये कहती है,

देवी सरस्वती - नारद जी, आइये, आप को एक कार्य करना है। स्वागत की तैयारी करनी है।

नारद जी - किस के स्वागत की तैयारी करनी है माते?

देवी सरस्वती - आज मेरी पुत्री पृथ्वी पर सरगम का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण कर के वापस लौट रही है। जाओ उस के स्वागत की तैयारी करो। 

नारद जी - आप की आज्ञा का पूर्णतः पालन होगा माते। 

नारद जी स्वागत की तैयारी करने लगते हैं। 


कुछ पल बाद का दृश्य 

माता सरस्वती और पुत्री लता मंगेशकर गले मिली हुयी है। दोनों की आंखों से गंगा जमना बह रही है। 

माता सरस्वती- बेटी, मैं क्या कहूँ, मुझ से तूने जो पाया था, जितना पाया था। उस का कयी गुना तू पृथ्वीवासियों को देकर आयी है। मुझे ही नहीं विश्व की सारी माताओं को इस सत्य पर गर्व होगा की बेटियां भी परिवार का नाम रोशन करती है। 

कुमार अहमदाबादी

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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी