(अनुवादक - महेश सोनी)
हनुमान चालीसा की रचना कैसे व कब हुयी?
हनुमान चालीसा की रचना कैसे हुयी?
ये कहानी नही सत्यघटना है। ये बहुत कम लोगों को ये मालूम है।
हनुमान चालीसा गाकर सब पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना करते हैं। लेकिन इस को रचना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
तुलसीदास जी के जीवन में घटना है। उस समय यानि इ.स. 1600 की घटना है।
एक बार तुलसीदासजी मथुरा जा रहे थे। रात घिरने लगी थी। उन्होंने उस दिन आग्रा में ठहरने का निर्णय किया। जैसे जैसे लोगों को मालूम होने लगा की तुलसीदासजी मथुरा पधारे हैं। लोगों के समूह के समूह उन के दर्शन करने के लिये आने लगे।
अकबर को इस घटना का पता चलने पर उसने बीरबल को पूछा 'ये तुलसीदासजी कौन है?' बीरबल ने कहा 'वे रामभक्त हैं। उन्होंने रामचरितमानस की रचना की है। मैं भी उन के दर्शन कर के आया हूँ। तब अकबर ने भी उन के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की। अकबर ने सिपाहियों की टुकडी भेजी। उस के कप्तान ने वहां जाकर तुलसीदासजी को बादशाह का लाल किले में हाजिर होने का फरमान सुनाया। तुलसीदासजी ने कहा 'मैं रामभक्त हूँ। मुझे बादशाह या लाल किले से कोई मतलब नहीं है। मैं लाल किले में नहीं आउंगा।
सिपाहीयों द्वारा तुलसीदासजी का उत्तर सुनकर बादशाह को बहुत बुरा लगा। वो लालपीला हो गया। लालपीले होकर हुक्म दिया 'तुलसीदास जी को हथकडीयां पहनाकर लाल किले में लेकर आओ।'
तुलसीदासजी को हथकडियां पहनाकर लालकिले में लाया गया। अकबर ने तुलसीदासजी से कहा 'अगर आप चमत्कारी व्यक्ति हो तो कोई चमत्कार कर के दिखाइये।'
तुलसीदासजी ने कहा 'मैं तो भगवान रामचंद्र जी का भक्त मात्र हूँ। कोई जादूगर नहीं हूँ कि जादू के खेल या कोई चमत्कार कर के दिखाउं।' ये सुनकर अकबर क्रोधित हो गया। क्रोधित होकर फरमान जारी कर दिया कि 'इसे हथकडियां पहनाकर कालकोठरी में कैद कर दो'
दूसरे दिन आग्रा के उस लाल किले में न जाने कहां से सैंकडों की संख्या में बंदर आ गये। उन्होंने पूरे लालकिले को अस्तव्यस्त कर दिया। जैसी तबाही हनुमान जी ने अशोक वाटिका में मचायी थी। वैसी तबाही मचा दी। तबाही देखते हुये अकबर ने बीरबल से पूछा 'ये सब क्या हो रहा है?
बीरबल ने कहा 'हुजूर, आप को चमत्कार देखना था ना! देख लीजिये।'
अकबर ने तुरंत हुक्म देखर तुलसीदासजी को कालकोठरी से मुक्त कर दिया; बेड़ियां खोल दी। तुलसीदासजी ने बीरबल से कहा 'मुझ कोई अपराध किये बिना दंड मिला है। मैं उस कोठरी में श्री रामचंद्रजी और हनुमान जी का स्मरण कर रहा था। आंखों से अश्रु झर रहे थे। हनुमान जी की प्रेरणा से मेरी कलम अपने आप चलने लगी थी। हनुमानजी की प्रेरणा से ही चालीस चौपाईयां लिख दी है।
जो भी व्यक्ति संकट या पीडा में होगा। वो जब इस का पाठ करेगा। उस के सारे संकट सारी पीडा दूर हो जायेंगे। इसे हनुमान चालीसा कहा जायेगा।
अकबर बहुत शरमिंदा हुआ। उसने तुलसीदासजी से माफी मांगी। उन्हें पूरे मान सम्मान और सैन्य के पहेरे के मथुरा की ओर साथ विदा किया।
हनुमान जी इसीलिये संकटमोचन कहे जाते हैं। आज सब हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं।
बोलो जय श्री राम
बोलो श्री हनुमान दादा जी की जय हो
अनुवादक - महेश सोनी
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