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बुधवार, फ़रवरी 2

मीठी क्षणों के सपने

तने से लिपटी ये बेल 
बहुत बेचैन करती है
नभ में लहराता बादल
किनारों से खेलता सागर
थिरकता मचलता बहकता
गुनगुनाता मदमस्त आंचल
ये बसंत ये बहार नस नस
में उठी मदहोश तरंगे
 ये उच्छृंखल भावनाएं
सब तृप्ति की बांहों में 
मसले जाने के लिये
संघर्ष की मीठी क्षणों से
गुजरने के लिये
और उस के बाद पागल होकर
झूमने के लिये बेचैन है
कुमार अहमदाबादी

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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी