नन्ही सी जान मत निकालो हमदम
गर ना माने तो दूंगी मैं मेरी कसम
मैं पानी पानी हो जाती हूं जी
मत छेडो सामने किसी के जानम
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
नन्ही सी जान मत निकालो हमदम
गर ना माने तो दूंगी मैं मेरी कसम
मैं पानी पानी हो जाती हूं जी
मत छेडो सामने किसी के जानम
कुमार अहमदाबादी
कहती है जो मधुबाला वो सुन लो
पीते पीते अच्छा सपना बुन लो
सपना जीवन की मंजिल होता है
तुम भी कोई मंजिल अपनी चुन लो
कुमार अहमदाबादी
सब कुछ पीता हूं मैं खुल्लम खुल्ला
आंसू आहें नफरत को वारि के साथ
निश दिन पीता हूं मैं खुल्लम खुल्ला
कुमार अहमदाबादी
ऐसी तस्वीरें बहुत पीड़ादायक होतीं है,इन तस्वीरों में कब रंग भरे जाएंगे क्या कोई कह सकता है?या इन्हें साल दर साल स्याह ही रहना होगा??
Uggar Bishnoi की वाल से -देखिए
ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया से परे हटकर ये तस्वीर उज्जैन से आई है सौजन्य धना शर्मा ने अपनी वालपे ये तस्वीर डाली थी लेकिन अंदर के पत्रकार ने हिला कर रख दिया। मेने बुजुर्ग की आंखों में आशा उमीद दो पैसे मिलने की देखी की कहीं से मिल जाये मैने उन झुर्रियों को देखा जो उम्र के पड़ाव में आखिरी सांस तक शरीर को सहेजे हुए है मेने उस कुर्ते नुमा शर्ट को देखा जो ये कह रहा हो मानो की कोई तो इस बोझ को कम कर दो इन सामान को खरीद कर वास्तव में बाबा महाकाल की नगरी में ये दृश्य दिल को छू गया। जहाँ एक और कम उम्र के नौजवान बड़ी बड़ी कम्पनी बनाकर एमेजॉन फ्लिपकार्ट से घर बैठे समान भेजकर करोड़ो अरबो की कमाई कर रहे है वही दो जून की रोटी के लिए इस बुजुर्ग की मशक्कत सोचने पर मजबूर कर रही है कि क्या अमीरी गरीबी का फासला इतना बढ़ेगा या सोच कर मेहनत को बहुत पीछे छोड़ जाते। पूरे समान को जोड़े तो 100 रुपये से ज्यादा नही होगा पर मजबूरी या यूं कहें कि किस्मत इंसान को कितना परेशान करती है ये सीधा सीधा उदाहरण है। समय के आगे किसी की नही चलती ऐसा कहते है पर में अनुरोध विनती करता हु ऐसे लोग जहा दिखे जैसे दिखे जो हो सके कुछ न कुछ खरीद लिया करे क्योंकि आपके खरीदने से उसके घर मे शाम का चूल्हा या उसकी जो मजबूरी रही होगी उसकी पूर्ति हो जाएगी। । क्योंकि जिस पैसों से इनका काम हो जाएगा वो पैसे शायद आपके लिए छोटा मोटा खर्च हो सकता है।
खुद्दार हूँ मैं गद्दार नहीं
लाचार हूँ मैं बीमार नहीं
कुमार अहमदाबादी
रुबाई
ममता को भरपूर सतायो कान्हा
गोवर्धन परबत को उठायो कान्हा
बचपन की मैत्री को निभायो कान्हा
पांचाली के ऋण को चुकायो कान्हा
कुमार अहमदाबादी
गोपीयों से रास रचायो कान्हा
रण में गीता ज्ञान सुनायो कान्हा
नव नगरी सागर तट बसायो कान्हा
कुमार अहमदाबादी
मादक स्वर में मीठे नग़में गाएं
दोनों मिलकर कंगन को खनकाएं
मधुरस पीकर मधुवन में खो जाएं
कुमार अहमदाबादी
आज चलना सीख ले कल दौडना आ जाएगाज़िंदगी की मंज़िलों को खोजना आ जाएगाज्ञान का दीपक जला ले मन में तेरे तू 'कुमार'रोशनी में उस की सच को तौलना आ जाएगाकुमार अहमदाबादी
सच कहता हूं सच है स्वीकार मुझे
फूलों से प्यार है बहुत प्यार मुझे
कलम के सिपाही हम है, दुश्मन की तबाही हम हैं।
पी.एम. के भाई हम है, परबत व राई हम हैं
कलम के....
सत्य की शहनाई और जूठ की रुसवाई हम हैं।
शब्द की सच्चाई और अर्थ की गहराई हम हैं
कलम के....
चिंतक का चिंतन और दर्शन का मंथन हम हैं।
धर्मों का संगम और एकता का बंधन हम हैं
कलम के....
विचार की रवानी और घटना की जुबानी हम हैं।
जीवन की जवानी और जोश की कहानी हम हैं
कलम के....
रचना की खुद्दारी और भाषा के मदारी हम हैं।
प्याले की खुमारी और हार-जीत करारी हम हैं
कलम के....
पेट की लाचारी और मानसिक बीमारी हम हैं।
ममता एक कंवारी और जिम्मेदार फरारी हम हैं
कलम के....
रूप के शिकारी और वीणा के पुजारी हम हैं।
दुल्हे की दुलारी और मीरा के मुरारी हम हैं
कलम के....
प्रेम की पुरवाई और जानम की जुदाई हम हैं।
तन्हाई में महफ़िल व महफ़िल की तरुणाई हम हैं
कलम के....
सपनों के रचैता और अर्थ हीन फजीता हम हैं।
भावों की सरिता और 'कुमार' की कविता हम हैं
कलम के....
[ये कविता तब लिखी गई थी जब बाजपाईजी पी.एम. थे]
कुमार अहमदाबादी
पहना दे साजन मेरे वरमाला
पी लेना फिर सब से प्यारी हाला
प्याला नाजुक कोमल चंचल है तू
एसे पीना की फूटे ना प्याला
कुमार अहमदाबादी
आंखें भी गुनगुना रही है कब से
मौसम का है नशा ये या यौवन का
मछली सी छटपटा रही है कब से
कुमार अहमदाबादी
मधुबाला भर दे दोनों का प्याला
मेरा साथी भी है पीने वाला
पीकर दर्शन अक्सर ये कहता है
ये जीवन ही है सच्ची मधुशाला
कुमार अहमदाबादी
पावन देवालय की रखवाली कर
मानव के महालय की रखवाली कर
सनकी और पागल मानस वालों से
दानी विद्यालय की रखवाली कर
कुमार अहमदाबादी
छोडो ये ये है शीशे का प्याला
प्यासी है तेरी प्यारी मधुबाला
जीवनभर होश में न आने दूंगी
मुझ को पी मैं हूं तेरी मधुशाला
कुमार अहमदाबादी
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी