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सोमवार, जनवरी 31

खिचडी खाइये और खिलाइये 

अनुवादित (अनुवादक - महेश सोनी)

अनुवादक - महेश सोनी

जब छोटे थे तब खिचडी खाते थे। मुझे याद है कयी बच्चे खिचडी के नाम से चिड जाते थे। लेकिन अंदाजा नहीं था। खिचडी में इतने गुण है; इतनी शक्ति है।


कुछ वर्ष पहले प्राचीन भारत की विरासत को जानने में रुचि जागी। उस समय प्रकृति को देखने जानने  की भी रुचि जगी थी। कुछ कुछ समझने भी लगे थे। विश्व में जंकफूड एवं फास्टफूड का बढ रहा मांग एवं उस आहार के कारण हो रही समस्या व नुक्सान के कारण मन द्रवित था। तब भारतीय आहार संस्कृति एवं पद्धति का अभ्यास शुरु किया था। । उस अभ्यास के दौरान खिचड़ी के बारे में जो मालूम हुआ।  वो यहाँ पेश करता हूँ। 


जूनागढ़  कृषि यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गोलकिया साहब के साथ मिलकर खिचडी के बारे में इधर उधर से जानकारी प्राप्त करने के बाद वडोदरा की एम. एस. यूनिवर्सिटी के साथ खिचड़ी के बारे में संशोधन करने पर मालूम हुआ। खिचड़ी 'गरीब' या 'बेचारी' नहीं है; बल्कि धनवान है, अमीर है;  वैभवशाली है।

दस हजार वर्ष पहले भी खिचडी थी।  ऋषि-मुनि भी खिचड़ी की हिमायत करते थे एवं आयुर्वेद भी खिचड़ी की हिमायत करता है। मग व चावल दोनों अति पवित्र व शक्तिशाली होते हैं। 


खिचड़ी शुभ एवं पवित्र आहार है; वो माता के दूध जैसी पवित्र है। देवी देवों को भी खिचड़ी पसंद है, प्यारी लगती है। खिचडी में अपार व अमाप गुण है। ये सिर्फ चार घंटों में पच जाती है। खिचड़ी खाने से मन निर्मल होता है। 

भारत में कहावत है ना 'जैसा अन्न वैसा मन'

मग व चावल की खिचडी में गाय का घी मिलाकर बल्कि उस घी को मथकर खाना शरीर और  मन के लिये फायदेमंद यानि गुणकारी रहता है।  

समझा एवं कहा जाता है कि भारत में अगर जंकफूड के बदले खिचड़ी खाने का प्रचलन बढ़ जाये तो स्वास्थ्य संबंधित कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। बीमारीयां कम हो सकती है। लोगों के तन   मन स्वस्थ स्वस्थ रह सकते हैं। यहां तक की आत्महत्याएं भी घट सकती है। किवदंति यह भी है कि खिचडी से मोक्ष भी मिल सकता है। 

ब्रह्म खिचड़ी में विविध प्रकार की सब्जियां होती है। जिस से भोजन करनेवाले को संतोष एवं तृप्ति की अनुभूति होती हैं। खिचड़ी का एक प्रकार पुदीने की खिचड़ी है। जो कई रोगों को मिटाती है। इस के अलावा विभिन्न स्वाद की खिचड़ी बनती है। इस विषय पर भी संशोधन किया गया है कि बच्चों को खिचडी के प्रति आकर्षित कैसे किया जाये। बच्चों में खिचड़ी खाने की रुचि को कैसे जगाया जाये। एक प्रयोग चीज़ खिचडी का भी किया गया है। 

हमारे कयी वानगीयां विशिष्ट है। देशी हांडवा पांचसौ(500) वर्ष पुराना है। कयी प्रकार की चटनियां बनती है। इन सब में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं। कहा जाता है खिचड़ी में सोलह(16) प्रकार के पोषक तत्व होते हैं। उस में एनर्जी (280 कैलरी) प्रोटीन (7.44) ग्राम, कार्बोहाइड्रेट (32 ग्राम) टोटल फेट (12.64 ग्राम) डायेटरी फाइबर (8 ग्राम) विटामीन ए (994.4 आइयु) विटामिन बी 6  (0.24 मिलीग्राम) आर्यन (2.76 मिलीग्राम) सोडियम (1015.4 मिलीग्राम) पोटेशियम (753.64 मिलीग्राम) मेग्नेशियम (71.12 मिलीग्राम) फॉस्फरस (148.32 मिलीग्राम) और जिंक (1.12 मिलीग्राम) होते हैं। 


एम.एस. यूनिवर्सिटी के फूड और न्यूट्रीशन विभाग द्वारा भूतकाल में खिचड़ी में पाये जानेवाले पोषक तत्वों का विश्लेषण किये जाने पर उपरोक्त जानकारी मिली थी। 


अगर खिचडी को मिट्टी के बर्तन में पकायी जाये तो उस के गुण और स्वाद बढ जाते हैं। एसा कहा जाता है कि पुराने समय में लोग मिट्टी के बर्तन में ही खिचडी बनाया करते थे। 


तैतरिय उपनिषद के एक श्लोक के अनुसार "अन्न ब्रह्म है," क्यों कि अन्न से ही प्रत्येक प्राणी उत्पन्न होता है। उत्पन्न होने के बाद अन्न से ही जीवित रहता है। अंत में मृत्यु के पश्चात अन्न में ही प्रवेश कर जाता है। 

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवदगीता में कहा है कि, मैं मनुष्य के शरीर में जठराग्नि के रुप में बसता हूँ। उन्होंने ये भी कहा है कि आयुष्य, बल, आरोग्य, सुख और प्रित बढानेवाला, समस्या पैदा न करनेवाला, हृदय और मन को स्थिर रखनेवाला, मन को उद्वेलित न करनेवाला रसादार व चकनाईवाला आहार सात्विक मनुष्यों को प्रिय लगता है। हमारी खिचड़ी में ये सब गुण शामिल होते है। 


वो समय बहुत जल्दी वापस आयेगा। जब लोग सत्य को जानकर समझकर भारतीय खाद्य पदार्थों और पद्धति की तरफ लौटने लगेंगे;  कि अन्न ही ब्रह्म है। खिचड़ी उस में सर्वोत्तम है। लोगों द्वारा खिचडी में रुचि बढने के बाद स्वास्थ सुधार की प्रक्रिया भी आरंभ होगी। अभी हम बेशक खिचड़ी के महत्व से अंजान हैं। लेकिन जल्दी ये सत्य लोगों की समझ में आने लगेगा कि देश विदेश के चटाकेदार व्यंजनों से हमारी सरल सादी खिचड़ी लाख दरज्जे बेहतर है; श्रेष्ठ है। 

एक तरफ करोडों युवक फास्टफूड खाकर अपने स्वास्थ्य को बिगाड़ रहे हैं। दूसरी तरफ खिचड़ी जैसे स्वास्थ्यप्रद स्वास्थ्यवर्धक भोजन से दूर रहकर अपना ही नुक्सान कर रहे हैं। 

अनुवादक - महेश सोनी

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