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सोमवार, अगस्त 28

मंदिर मंदिर मूरत तेरी


दरशन दो घनश्याम नाथ मेरी अंखियां प्यासी रे

मन मंदिर की ज्योत जगा दो, घट घट वासी रे


1

 मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी ना दिखे सूरत तेरी

यह शुभ बेला आई मिलन की, पूरन मासी रे


2

 द्वार दया का जब तू खोले, पंचम स्वर में गूंगा बोले

अंधा देखें लंगड़ा चलकर पहुंचे काशी रे


3

पानी पीकर प्यास बुझाऊं, नैनन को कैसे समझाऊं

आंख मिचौली अब तो छोड़ो, मन के वासी रे


4

लाज ना लुट जाये प्रभु मेरी, नाथ करो ना दया में देरी

तीनों लोक छोड़ के आवो, गगन विलासी रे


5

द्वार खड़ा कब से मतवाला, मांगे तुम से हार तुम्हारा

नरसी की प्रभु विनती सुन लो भगत विलासी रे






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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी