दरशन दो घनश्याम नाथ मेरी अंखियां प्यासी रे
मन मंदिर की ज्योत जगा दो, घट घट वासी रे
1
मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी ना दिखे सूरत तेरी
यह शुभ बेला आई मिलन की, पूरन मासी रे
2
द्वार दया का जब तू खोले, पंचम स्वर में गूंगा बोले
अंधा देखें लंगड़ा चलकर पहुंचे काशी रे
3
पानी पीकर प्यास बुझाऊं, नैनन को कैसे समझाऊं
आंख मिचौली अब तो छोड़ो, मन के वासी रे
4
लाज ना लुट जाये प्रभु मेरी, नाथ करो ना दया में देरी
तीनों लोक छोड़ के आवो, गगन विलासी रे
5
द्वार खड़ा कब से मतवाला, मांगे तुम से हार तुम्हारा
नरसी की प्रभु विनती सुन लो भगत विलासी रे
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