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मंगलवार, अगस्त 1

सत्य क्या होता है?

भारत और पाकिस्तान एक साथ स्वतंत्र हुए थे. लेकिन आज भारत तरक्की कर रहा है. पाकिस्तान लगातार पिछड़ रहा है. क्यों? जब की दोनों की एक जैसी परिस्थितियां थी. 

इस मुद्दे पर आगे कुछ लिखूं. उस से पहले एक प्रश्न पूछता हूं. क्या आप उस पिता को उस गुरु को बुरा कहेंगे. जो अपनी संतानों को अपने शिष्यों को अपने पैर पर खड़ा होना सिखाता है. जो गुरु अपने शिष्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कठोर कदम उठाता है. कहेंगे बुरा? नहीं कहेंगे. 

अब इसे भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में देखें. 

दोनों एक ही दिन स्वतंत्र हुए. तब दोनों की परिस्थितियां एक समान थी. बल्कि पाकिस्तान फायदे में ही था. उस समय दोनों देशों में विदेशी कंपनियां थी. लेकिन भारत में स्वतंत्रता के बाद स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा देने की नीति अपनाई. जब की पाकिस्तान ने एसी कोई नीति नहीं अपनाई. परिणाम स्वरूप भारत में स्वदेशी कंपनियां और स्वदेशी उत्पादन विकसित होने लगे. इस के कुछ उदाहरण देखें. ठहरिए, पहले कुछ एसे उत्पादों के उदाहरण देखते हैं. जो उस समय मशहूर थे. जिन्हें भारतीय समझा जाता था. लेकिन वो भारतीय नहीं थे. मर्फी, बुश, फिलिप्स रेडियो, डालडा घी आदि एसी कंपनियों के प्रोडक्ट थे. जो मूलतः विदेशी थी. विदेशी कंपनियों की भारतीय यूनिट में उत्पादनों को असेंबल किया जाता था या निर्माण किया जाता था. लेकिन ये पूर्णतः भारतीय प्रोडक्ट नहीं थे. पूर्णतः भारतीय प्रोडक्ट अगर कोई था तो वो पारले के बिस्कुट थे. भारत में पूर्ण रुप से विदेशी उत्पादनों को प्रतिबंधित नहीं किया. लेकिन उन पर टैक्स बढ़ा दिया. एसा इसलिए की जो विदेशी चीजें मंगा सकते हों वे मंगवा सके और भारत सरकार को भी आमदनी हो. 

इन नीतियों के कारण भारत में धीमे धीमे स्वदेशी उत्पादन होने लगे. शुद्ध भारतीय उत्पादन भी ब्रांड(ब्रांड किसे कहते हैं? एक प्रतिष्ठित नाम को ब्रांड कहते हैं.) बनने लगे. पारले के बाद निरमा आया. धीरे धीरे अन्य क्षेत्रों में भी प्रोडक्ट ब्रांड का रूप लेने लगे. हीरो साइकिल याद कीजिए. डेयरी उद्योग में अमूल एक ब्रांड बना. ये संख्या बढ़ती गई. आज बालाजी वेफर्स एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड है. ये तो आदमी के रोजमर्रा की चीजें हैं. अब तो भारत सेटेलाइट के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन चुका है. इतना आत्मनिर्भर की अपने दम पर चंद्रयान को चंद्र तक भेज सकता है. ये सब कैसे संभव हुआ? नेहरु को कोसने वाले ये ना भूलें. चंद्रयान का प्रोजेक्ट जो संस्था(इसरो) चला रही है. उस की स्थापना नेहरु ने की थी. अटल बिहारी बाजपेई जी की सरकार के कार्यकाल में परमाणु परीक्षण किए गए थे. जिस संस्था ने वो परमाणु बम बनाए थे. उस संस्था की स्थापना कांग्रेस के कार्यकाल में हुई थी. 

आज इंटरनेट के युग में नेट पर मिल रही जानकारी संपूर्ण सत्य नहीं होती. आखिर में एक सत्य के साथ पोस्ट समाप्त करता हूं. 


सत्य आसानी से नहीं मिलता है. उसे खोजना पड़ता है. जो जानबूझकर आप तक पहुंचाया जाए. वो सत्य नहीं बल्कि महाभारत में युधिष्ठिर द्वारा बोला गया वाक्य...... "सच जूठ मैं नहीं जानता लेकिन अश्वत्थामा मारा गया" होता है.

महेश सोनी

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