तर्ज - मेहंदी लगी थारे हाथां में
फूलां री छड़ी थारे हाथां में, मुकुट विराजे माथे में
थारे गल फूलां रो हार बाबा राम धणी
नाम सुण्यो है जद सूं बाबा, नींदडली नहीं आंख्या में
घणी दूर सूं चल के आया, दो दर्शन थांरे भगतां ने
आंसु भर्या म्हारी आंख्या में, नैया है भवसागर में -2-
म्हारी नैया पार लगावो, म्हारा रामधणी...........फूलों री छड़ी थारे हाथां में
एक सहारो थारो बाबा, म्हाने क्यों तरसावे है
अब सूं थारी टेर लगावां, क्युं नई दर्श दिखावे है
गले लगा थारे टाबर ने, थोंरे चरणा रे चाकर ने
अब सुण ले लख दातार, म्हारा रामधणी..........फूलों री छड़ी थारे हाथां में
म्हैं सुणी हों बाबा थारी, महिमा अपरंपार घणी
क्यों तरसाओ पीरां जी थांरे टाबरियां ने आस घणी
गुण गावां दिन रातां ने, भूल गया सब कामां ने
अब नैया पार लगावो, म्हारा राम धणी..............फूलों री छड़ी थारे हाथां में
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