लोकतंत्र एसी व्यवस्था है. जिस में सत्ता पक्ष को शासन करने वाले पक्ष को विपक्षी की बात धैर्य से सुननी पड़ती है. लोकतंत्र को समझने जानने वाले सुनते भी हैं. कटु से कटु आलोचना का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है. लेकिन चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष किसी को ये हक नहीं होता. वो सामने वाले पक्ष की पारिवारिक मामलों के बारे में कुछ पूछे या आलोचना करे. सामने वाले के परिवार के रहन सहन या अंदरुनी व्यवस्था के बारे में कुछ पूछे या कहे.
इस के बावजूद अगर सत्ता पक्ष या विपक्ष एसा करता है तो ये समझ जाना चाहिए. एसा करने वाला लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी तरह आत्मसात कर नहीं पाया है.
महेश सोनी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें