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गुरुवार, अप्रैल 27

कभी देखा है(रुबाई)


आंखों में समंदर सा कभी देखा है
सांसों में बवंडर सा कभी देखा है
भीतर ही भीतर पीर पी लेता है जो
उस मस्त कलंदर सा कभी देखा है
कुमार अहमदाबादी

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जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी