साथ बैठे बैठकर जब बात सुलझाने लगे
हुस्न एवं इश्क दोनों मन को बहलाने लगे
बात सादी थी सरल पर यार जब माना नहीं
प्रेम्मपूर्वक यार को हम बात समझाने लगे
प्रेम गंगा में बहाया इस कुशलता से की अब
दोपहर में चांद तारे नज़र आने लगे
आंसुओं को त्याग दो स्वीकार कर लो आज को
बाग में भी फूल नवरंगी है जब आने लगे
याद आए जब मधुर पल तृप्ति के तब ए ‘कुमार’
कामिनी को कल्पना के फूल महकाने लगे
कुमार अहमदाबादी
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