Translate

शुक्रवार, अप्रैल 21

जाम धीरे धीरे पी(गज़ल)


*ग़ज़ल*

जाम पी लेकिन जरा धीरे धीरे पी

आज या कल या सदा धीरे धीरे पी


शाम को पी रात को पी दोपहर को

जाम का लेने मजा धीरे धीरे पी


माल है भरपूर मत कर जल्दबाजी

प्रेम से बाकायदा धीरे धीरे पी


कायदा होता है पीने का भी प्यारे

कह रहा है कायदा धीरे धीरे पी


गौर से सुन इस रसीली शाम का गर

है उठाना फायदा धीरे धीरे पी


देह तेरी जाम है औ’ सांस हाला

दे रहा है वो सदा धीरे धीरे पी

*कुमार अहमदाबादी*

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी