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गुरुवार, अप्रैल 20

गांठ खोल दो तुम

 

हवा में रस मधुर अब घोल दो तुम
प्रणय स्वीकार है जी बोल दो तुम
छुपाओ मत शीशे जैसे बदन को
सीने पर गांठ है वो खोल दो तुम
कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी