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शुक्रवार, अप्रैल 21

मस्त चांदनी(रूबाई)


नमस्कार,

पहली बार एक रुबाई लिखने की हिम्मत की है। मार्गदर्शन की आशा के साथ आप सब के सामने पेश कर रहा हूं। 


है आज पूर्णिमा मदमस्त चांदनी है

देखो सनम मधुर मदहोश रोशनी है

समझो जरा प्रीतम संकेत प्रेम के तुम

जल्दी आ जाओ बेक़ाबू ये कामिनी है

*कुमार अहमदाबादी* 

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी