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मंगलवार, अप्रैल 4

शाम की प्यास

 

शाम की बेला मधुर है प्यास भी गहरी है

सांस लेने के लिये जब जिंदगी ठहरी है

सोचता हूं घूंट दो या चार मैं पी ही लूं

रात होनेवाली है औ’ रात भी गहरी है

कुमार अहमदाबादी 

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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी