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शुक्रवार, अप्रैल 21

पूजा(अनुदित लेख)

*पूजा किसे कहते हैं?*

*अनुवादक - महेश सोनी*

*उत्तर* - पूजनम् (पूज+ल्युट) का सीधा सादा सारा अर्थ; सम्मान करना,सादर स्वागत करना, आराधना करना, अर्चना करना, आदरपूर्वक भोग धरना: होता है। सगुणोपासना( सगुण+उपासना, सगुण यानि (सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण) में देवपूजन का अधिक महत्व है। वैदिक काल से अग्नि, सूर्य, वरुण, रुद्र, इंद्र आदि देव और दिव्य शक्तियों का पूजा होती रही है/होती आयी है। भारत का इतिहास में पूजा से प्राप्त हुयी अकल्पनीय उपलब्धियों की अनेक घटनायें दर्ज है। भारतीय पौराणिक साहित्य एसे किस्सों से समृद्ध है। पुरातन काल एवं परंपरा से ही दो प्रकार की विधियों से पूजा की जाती रही है। 1. योग 2. पूजा

1. *योग*

अग्निहोत्रि द्वारा पूजा करवाने को योग या यज्ञ कहा जाता है। ये पूजा अनेक लोगों के सहयोग से संपन्न होते हैं। इस में मंत्रों और परंपराओं का विशिष्ट क्रम रहता है। ये योग सकाम और निष्काम के भेद के कारण अनेक प्रकार के होते हैं। प्रत्येक की अनुष्ठेय क्रिया भी अलग अलग प्रकार की होती है। 

2. *पूजा*

कुछ निश्चित पदार्थों सहित देवों की पूजा अर्चना होती है। पत्र, पुष्प एवं जल के द्वारा अर्चना करने को ही पूजा कहते हैं। इस पूजा द्वारा इंसान अपने आराध्य देव को प्रसन्न कर के वरदान मांगता है। इस पूजा की पंचोपचार(पंच+उपचार=पंचोपचार) से लेकर सर्वांगोपचार(सर्वांग+उपचार= सर्वांगोपचार) तक अनेक प्रणालीयां है। (1) वैदिक परिपाटी (2) पौराणिक परिपाटी। पौराणिक परिपाटी के मुद्दे पर मंत्रो में भेद दिखायी देता है।

*हिन्दू मान्यताओं नो धार्मिक धार्मिक आधार* *(लेखक - डॉ. भोजराज द्विवेदी*) की पुस्तक के पृष्ठ नंबर 86 पर दिये गये प्रश्न एवं उत्तर का अनुवाद

*अनुवादक - महेश सोनी* 

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