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शुक्रवार, अप्रैल 28

चले आओ तुम(रुबाई)


मदमस्त गुलाबी है चले आओ तुम

ये प्यास रसीली है चले आओ तुम

मटकी भी है मुरली भी है गौ माता भी

संध्या ये सुहानी है चले आओ तुम

कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी