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मंगलवार, जनवरी 11

कबूतर जा जा जा


मैं छत पर खडा था

अचानक एक बूढा कबूतर मेरे पास आया

आकर वो बातें करने लगा

बातें थी बदलते समय की

बदलते फैशन की 

समय के साथ

परिवर्तित हो जाते सिद्धांतों की 

उसने बहुत बातें की 

लेकिन उस की एक बात

मेरे दिल को छू भी गयी

और झकझोर भी गयी

उसने शिकायत की थी

आजकल तुम इंसानों ने

हमें बेरोजगार कर दिया है

आपने हमें डाकिया बनाना क्यों छोड दिया?

कुमार अहमदाबादी

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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी