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बुधवार, जनवरी 19

पसीने की थिरकन


जेठ की तपती दोपहरी में

मजदूर ने गेहूं की आखिरी बोरी 

दुकान के सामने रखी

सेठ ने तुरंत केश बोक्ष में से 

रुपये निकालकर उसे मजदूरी दे दी

मजदूरी जैसे ही मजदूर के हाथ में आयी

मजदूर के अंग अंग पर चांदी सा चमक रहा

पसीना थिरकने लगा।

कुमार अहमदाबादी


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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी