शमशान के आंगन में
झूले पर झूल रहा है
निर्दोष बचपन
परमात्मा भी कैसे कैसे
दृश्य दिखाता है इंसान को
कभी कभी सोचता हूँ
परमात्मा एवं विधाता
एसे दृश्य क्यों दिखाते हैं
क्या इसलिये की
इंसान को ये याद रहे कि
तुझे जो भी कर्म करने हैं
शमशान के द्वार के इस पार कर ले
बच्चों की तरह मन भर हंस ले
आनंद के उत्सव के झूलों पर झूल ले
और ये सब
तू तब तक कर सकेगा जब थक
तेरे अंदर एक बच्चा सांस लेता रहेगा
जिस दिन बच्चे ने सांस तोडी
सारे झूले टूट जाएंगे
और तू यहीं आयेगा
लेकिन
अपने पैरों पर नहीं
चार कंधों पर आयेगा
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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सोमवार, जनवरी 24
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