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सोमवार, जनवरी 24

चित्र को सुनो



शमशान के आंगन में
झूले पर झूल रहा है
निर्दोष बचपन
परमात्मा भी कैसे कैसे
दृश्य दिखाता है इंसान को
कभी कभी सोचता हूँ
परमात्मा एवं विधाता
एसे दृश्य क्यों दिखाते हैं
क्या इसलिये की
इंसान को ये याद रहे कि
तुझे जो भी कर्म करने हैं
शमशान के द्वार के इस पार कर ले
बच्चों की तरह मन भर हंस ले
आनंद के उत्सव के झूलों पर झूल ले
और ये सब
तू तब तक कर सकेगा जब थक
तेरे अंदर एक बच्चा सांस लेता रहेगा
जिस दिन बच्चे ने सांस तोडी
सारे झूले टूट जाएंगे
और तू यहीं आयेगा
लेकिन
अपने पैरों पर नहीं
चार कंधों पर आयेगा
कुमार अहमदाबादी 


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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी