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शुक्रवार, जनवरी 28

सेवानिवृत्ति (काल्पनिक आत्मकथा)

 


देश के गणतंत्र दिवस की परेड में आखिरी बार हाजिर रहने के बाद कुछ ही देर पहले लौटा हूँ। वहां तो बहुत मुश्किल से अपने आंसू रोक सका था। लेकिन इस पल मेरी आंखे छलछला रही है; और क्यों ना छलछलाये? निवृति की आखिरी क्षणों में जब विश्व के सब से बडे गणतंत्र के प्रधानमंत्री सर पर हाथ रखकर सेवाओं को बिरदाए तो, आंखें क्यों ना छलछलाए?

माना की मैं जानवर हूँ। लेकिन हम जानवरों के सीने में भी दिल धडकता है। सीधी बात है कि जब दिल धडकता है तो भावनाएं भी जन्म लेती है। हमारी नसों में भी खून बहता है। 

और मैं भाग्यवान हूँ कि मैंने भारत देश में जन्म लिया है। भारत जहां जानवरों को भी सम्मानित किया जाता है। जैसे मेरे सेवाकाल के दौरान मुझे किया गया है। मैं केवल दूसरा अश्व हूँ। जिसे चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ का कमान्डेशन कार्ड प्रदान किया गया है। मैंने अपने कार्यकाल में गणतंत्र दिवस की तेरह परेड देखी है। मैं जिस रेजिमेन्ट में था। वो सब से पुरानी है। मैंने इक्कीसवीं सदी के आरंभ के वर्षों में सेवा का आरंभ किया था। दो से ज्यादा राष्ट्रपतियों का कार्यकाल देखा है। समय कितनी तेजी से बहता है। मैं तब तीन वर्ष का था। जब सेवा शुरु की थी; और आज सेवा के आखिरी दिन देश के प्रधानमंत्री एवं अन्य गणमान्य मंत्रियों के लाड प्यार को पाने के बाद निवृत्त हुआ हूँ। 

मैं ये सोचकर गदगद हूँ। मेरे निवृत होने के बाद भी मेरा खयाल रखा जायेगा। इसीलिये भारत महान है। इंसान तो इंसान यहां हम जानवरों का सम्मान किया जाता है,  और सम्मान दिया भी जाता है। अब इस से पहले की आंसू छलछला जाये। आप से विदा लेता हूँ।

विराट( पीबीजी का सेवा निवृत अश्व)

काल्पनिक आत्मकथा)

लेखक - कुमार अहमदाबादी

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