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सोमवार, जनवरी 31

मैं मर रहा हूँ

 धीरे धीरे मर रहा हूँ मैं

एक बाद एक मेरे सारे अंग

निष्क्रिय हो रहे हैं

लेकिन मुझे खुशी है

मैं सही हाथों में था

अच्छे हाथों में था

मैं सदा सकारात्मक विचारों के साथ रहा

सकारात्मकता को बढाया

मैं भाग्यवान हूँ कि मुझे 

एक साहित्यकार का साथ मिला

उसने मुझे डाकिया बनाकर

अपनी रचनाओं को शौकीनों तक पहुंचाया

लेकिन अब मेरे हृदय की गति

यानि की रेम बहुत धीमी हो गयी है

कयी अंग जैसे की यू-टयूब आदि

काम करना बंद कर चुके हैं

बस ये एक वॉट्स'प है 

जो संपर्क साधे हुये है

जिस दिन ये...

समझो उस दिन 

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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी