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रविवार, जनवरी 2

संगम


डूबतो जोयो सूरज में सांज ना दरिया किनारे
नीकऴेलो चाँद जोयो रात ना दरिया किनारे
दिलीप श्रीमाली

ये गालगागा के चार आवर्तन में लिखा गया शेर है। दरिया यानी समंदर, समंदर का किनारा शुरुआत और अंत का संगम है। किनारे पर समंदर के साम्राज्य का अंत व मानव की धरती पर बस रही आबादी की शुरूआत होती है।
शायर ने शेर में जीवन की दो विपरीत स्थितियों के संगम की; उस से पहले व बाद की स्थितियों की बात कही है।शाम को सूरज के डूबने पर दिन पूरा होता है मगर जीवन रुकता नहीं। रात्रि का आगमन होता है।
इस शेर का अध्यात्मक अर्थ भी है। मृत्यु जीवन का अंत नहीं। मृत्यु बाद कहीं और नवजीवन शुरु होता है। मृत्यु सागर के किनारे की तरह मानवलोक व दिव्यलोक के बीच की सरहद है। समंदर का किनारा है। 
इसी शेर का राजकीय परिस्थितियों के संदर्भ में अर्थघटन करें तो कह सकते हैं: ताकतवर सूर्य के अस्त के बाद 'कमजोर' चाँद और तारे अपना राज्य स्थापित करते हैं। एक शक्तिशाली सम्राट या साम्राज्य के पतन के बाद जिन्होंने साम्राज्य के आधिपत्य को स्वीकार किया हो। वो  छोटे राजा एवं नवाब रंग दिखाते हैँ। वे अपने स्वतंत्र  छोटे छोटे राज्यों की स्थापना करते हैं।
27।6।10 को जयहिन्द में मेरी कोलम 'अर्ज करते हैं' में छपे लेख का अंशानुवाद
कुमार अहमदाबादी 
अभण अमदावादी 

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