Translate

मंगलवार, जनवरी 4

आखिरी कंवारी नींद


ए मेरे प्यारे आंगन,

         आज तेरे दामन में मेरी आखरी रात है। कल से तू मेरा होकर भी मेरा नहीं रहेगा। आज तेरे आंचल में आखिरी बार चैन से सोना चाहती हूँ। कल से शायद तेरे आंगन में अब तक जैसे सोती थी।  ऐसे सोना मेरे नसीब में हो या ना हो। 

आज न जाने कितने पल कितनी घडियां कितने दिन कितने  सप्ताह और कितने वर्ष तेरे दामन में चैन से सोयी हूँ,  खेली- कूदी हूँ। वो सब इस पल मेरी आंखों में तारों के समान झिलमिला रहे हैं। न जाने क्या क्या याद आ रहा है। 

पापा कहते हैं। यहीं मैंने पहला कदम ऊठाया था यानि की चलना सीखी थी। लेकिन तब कहाँ मालूम था। चलते चलते एक दिन एसा आयेगा। मुझे तुझे यानि आंगन से ही बाहर चला जाना पडेगा। 

मम्मी का खाना खाने के लिये पुकारना, पाठशाला जाने के लिये तैयार करना, पाठशाला की यूनिफॉर्म पहनाना; पाठशाला के लिये तैयार करते समय ये कहना 'हे भगवान, ये लडकी अपनी जिम्मेदारी को कब समझेगी।' माँ की डांट से अक्सर पापा का बचाना। पाठशाला के शिक्षक द्वारा दिया गया। होमवर्क करना, कितना कुछ याद आ रहा है। 

पापा व मम्मी मैं क्या लिखूं और क्या बाकी रखूं। 

भैया के साथ लडना-झगड़ना, प्यार करना, साथ भोजन करना, होमवर्क करने में एक दूसरे की मदद करना व लेना। 

😭😭😭😭😭😭😭😭😭

अब और नहीं  लिख सकती मैं, आंखे जिन्हें कल बरसना है। इसी पल बरसने लगेगी। बहुत ही मुश्किल से आंसूओं को रोककर रखा है। 

और फिर आज तेरे दामन में गहरीवाली आखिरी नींद भी तो लेनी है। एसा नहीं है की कल के बाद कभी तेरी गोद में सोउंगी नहीं। लेकिन वो नींद कुंवारी नींद नहीं होगी। आज अंतिम कंवारी नींद है। 

आंगन की बेटी

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

लेखक

कुमार अहमदाबादी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी