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रविवार, जनवरी 2

प्रारंभ


प्रिये,

मैं 

सुहाग की 

सेज पर

फूल नहीं बिछाउंगा

क्यों कि,

मैं नहीं चाहता 

हमारे 

दाम्पत्य जीवन

का

प्रारंभ

कोमलता

को 

कुचलकर हो

*कुमार अहमदाबादी*

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मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी