पीपल की छाया सी है तू सनम
सौंदर्य की व्याख्याएं कहती हैं मुझे
सौंदर्य की परिभाषा सी है तू सनम
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
पीपल की छाया सी है तू सनम
सौंदर्य की व्याख्याएं कहती हैं मुझे
सौंदर्य की परिभाषा सी है तू सनम
कुमार अहमदाबादी
आता हूं मैं वापस जाता भी हूं
ले जाता हूं कुछ मैं लाता भी हूं
चलता है मेरा ये आना जाना
खोता हूं कुछ कुछ मैं पाता भी हूं
कुमार अहमदाबादी
मदमस्त गुलाबी है चले आओ तुम
ये प्यास रसीली है चले आओ तुम
मटकी भी है मुरली भी है गौ माता भी
संध्या ये सुहानी है चले आओ तुम
कुमार अहमदाबादी
देखो कभी लाचार नयन के भीतर
झांको कभी बीमार नयन के भीतर
लाचार पिता की अधूरी इच्छाएं
दिख जाएगी खुद्दार नयन के भीतर
कुमार अहमदाबादी
ભીંત પર ફોટો બની લટકો હવે
ચક્ર પૂરું થઈ ગયું છટકો હવે
સાધનોના થીગડા માર્યા પછી
ઘર બન્યું છે રૂપનો કટકો હવે
ભોગવો છો ચાતર્યો ચીલો તમે
શૂળ થઈને આંખમાં ખટકો હવે
રેલવેને રોડ પર હાંક્યા પછી
રાજીનામાનો સહો ઝટકો હવે
ચેતવ્યાં'તા પણ તમે માન્યા નહીં
છો કનક તો શું થયું બટકો હવે
અભણ અમદાવાદી
शाम की बेला मधुर है प्यास भी गहरी है
सांस लेने के लिये जब जिंदगी ठहरी है
सोचता हूं घूंट दो या चार मैं पी ही लूं
रात होनेवाली है औ’ रात भी गहरी है
*कुमार अहमदाबादी*
આજે છે પૂર્ણિમા મદમસ્ત ચાંદની છે
માણો સનમ મધુર મદહોશ રોશની છે
સમઝો અભણ પ્રીતમ સંકેત પ્રેમનો ને
જલ્દી આવો અહીં બેકાબુ કામિની છે
*અભણ અમદાવાદી*
नमस्कार,
पहली बार एक रुबाई लिखने की हिम्मत की है। मार्गदर्शन की आशा के साथ आप सब के सामने पेश कर रहा हूं।
है आज पूर्णिमा मदमस्त चांदनी है
देखो सनम मधुर मदहोश रोशनी है
समझो जरा प्रीतम संकेत प्रेम के तुम
जल्दी आ जाओ बेक़ाबू ये कामिनी है
*कुमार अहमदाबादी*
राष्ट्र के निर्माण में तन मन लगाना चाहिये
बीस में से एक पैसे को बचाना चाहिये
देश है तो धर्म है औ’ देश है तो कर्म है
कर्म एवं धर्म में मन को लगाना चाहिये
*कुमार अहमदाबादी*
*पूजा किसे कहते हैं?*
*अनुवादक - महेश सोनी*
*उत्तर* - पूजनम् (पूज+ल्युट) का सीधा सादा सारा अर्थ; सम्मान करना,सादर स्वागत करना, आराधना करना, अर्चना करना, आदरपूर्वक भोग धरना: होता है। सगुणोपासना( सगुण+उपासना, सगुण यानि (सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण) में देवपूजन का अधिक महत्व है। वैदिक काल से अग्नि, सूर्य, वरुण, रुद्र, इंद्र आदि देव और दिव्य शक्तियों का पूजा होती रही है/होती आयी है। भारत का इतिहास में पूजा से प्राप्त हुयी अकल्पनीय उपलब्धियों की अनेक घटनायें दर्ज है। भारतीय पौराणिक साहित्य एसे किस्सों से समृद्ध है। पुरातन काल एवं परंपरा से ही दो प्रकार की विधियों से पूजा की जाती रही है। 1. योग 2. पूजा
1. *योग*
अग्निहोत्रि द्वारा पूजा करवाने को योग या यज्ञ कहा जाता है। ये पूजा अनेक लोगों के सहयोग से संपन्न होते हैं। इस में मंत्रों और परंपराओं का विशिष्ट क्रम रहता है। ये योग सकाम और निष्काम के भेद के कारण अनेक प्रकार के होते हैं। प्रत्येक की अनुष्ठेय क्रिया भी अलग अलग प्रकार की होती है।
2. *पूजा*
कुछ निश्चित पदार्थों सहित देवों की पूजा अर्चना होती है। पत्र, पुष्प एवं जल के द्वारा अर्चना करने को ही पूजा कहते हैं। इस पूजा द्वारा इंसान अपने आराध्य देव को प्रसन्न कर के वरदान मांगता है। इस पूजा की पंचोपचार(पंच+उपचार=पंचोपचार) से लेकर सर्वांगोपचार(सर्वांग+उपचार= सर्वांगोपचार) तक अनेक प्रणालीयां है। (1) वैदिक परिपाटी (2) पौराणिक परिपाटी। पौराणिक परिपाटी के मुद्दे पर मंत्रो में भेद दिखायी देता है।
*हिन्दू मान्यताओं नो धार्मिक धार्मिक आधार* *(लेखक - डॉ. भोजराज द्विवेदी*) की पुस्तक के पृष्ठ नंबर 86 पर दिये गये प्रश्न एवं उत्तर का अनुवाद
*अनुवादक - महेश सोनी*
*ग़ज़ल*
जाम पी लेकिन जरा धीरे धीरे पी
आज या कल या सदा धीरे धीरे पी
शाम को पी रात को पी दोपहर को
जाम का लेने मजा धीरे धीरे पी
माल है भरपूर मत कर जल्दबाजी
प्रेम से बाकायदा धीरे धीरे पी
कायदा होता है पीने का भी प्यारे
कह रहा है कायदा धीरे धीरे पी
गौर से सुन इस रसीली शाम का गर
है उठाना फायदा धीरे धीरे पी
देह तेरी जाम है औ’ सांस हाला
दे रहा है वो सदा धीरे धीरे पी
*कुमार अहमदाबादी*
जानता हूं तू मुझे तड़पाएगी
औ’ कभी एकांत में हंसाएगी
सामने जब आएगी सब भूलकर
दौड़कर मेरे गले लग जाएगी
*कुमार अहमदाबादी*
*ऐतिहासिक खूबसूरत शाम है*
*साथ मेरे साकी और जाम है*
*हो रहा है प्रेम कुछ बोले बिना*
*ये जीवन का सब से मीठा याम है*
*कुमार अहमदाबादी*
ગરબે રમવા આવો માં અંબા નોરતાની રાત છે
રાસ પણ રમીશું માં અંબા નોરતાની રાત છે.....
આની સાથે મારી સાથે મારી સાથે આની સાથે......ગરબે રમવા આવો માં અંબા નોરતાની રાત છે
ઝમક્યું રે ઝમકયું માં નું ઝાંઝર ઝમક્યું
ચમકી રે ચમકી માં ની ચુંદલડી ચમકી રે
આની સાથે મારી સાથે મારી સાથે આની સાથે........ગરબે રમવા આવો માં ચામુંડા... નોરતાની રાત છે
રઢિયાળી રાત છે તારાએ સાથે છે
મોજીલી રાત છે ચાંદલિયો સાથે છે
આની સાથે મારી સાથે મારી સાથે આની સાથે............ગરબે રમવા આવો માં દુર્ગા.... નોરતા ની રાત છે
શેરીઓ શણગારી છે શણગાર્યા ચોક છે
સોસાયટી આખે આખી અમે શણગારી છે
આની સાથે મારી સાથે મારી સાથે આની સાથે .... ગરબે રમવા આવો માં નવદુર્ગા........... નોરતા ની રાત છે
અભણ અમદાવાદી
ये गरबा यूं तो गुजराती भाषा में है। सब को पढने में सरल रहे इसलिये हिन्दी लिपि में पेश किया है।
गरबे रमवा आवो मां अंबा नोरता नी रात छे
रास पण रमीशुं साथे मां अंबा नोरता नी रात छे....
आनी साथे एनी साथे मारी साथे आनी साथे....गरबे रमवा आवो मां अंबा.. नोरता नी रात छे
झमक्युं रे झमक्युं मां नुं झांझर झमक्युं रे
चमकी रे चमकी मां नी चुंदलडी चमकी रे़
आनी साथे मारी साथे मारी साथे आनी साथे....गरबे रमवा मां चामुंडा........नोरता नी रात छे
रढियाळी रात छे ताराओ साथे छे
मोजीली रात छे चांदलियो साथे छे
आनी साथे मारी साथे मारी साथे आनी साथे....गरबे रमवा मां दुर्गा...........नोरता नी रात छे
शेरीओ शणगारी छे शणगार्या चोक छे
सोसायटी आगे आगई अमे शणगारी छे
आनी साथे मारी साथे मारी साथे आनी साथे..... गरबे रमवा आवो मां नवदुर्गा..... नोरता नी रात छे
कुमार अहमदाबादी
झूम झूम के मन ये गाये
मात् के चरणोँ में शीश झुकाये
शरण में ले ले चाहे मेरी
बिगड़ी बनाये या न बनाये..झूम झूम के मन ये गाये
शरण में तेरी आया हूँ मैं
सबकुछ पीछे छोड़कर माँ
क्या था मेरा जो लाता मैं
आया हूँ खुद को तुम से जोड़कर माँ..झूम झूम के मन ये गाये
क्या बतलाउँ क्या पाऊँगा
सब कुछ पाकर खोना है
जीवन ये यूँ जीना है कि
हँसना है पल पल इक पल न रोना है..झूम झूम के मन ये गाये
कुमार अहमदाबादी
આવ્યા છે આવ્યા છે આવ્યા છે એ
આવ્યા છે આવ્યા છે આવ્યા છે એ....હે..આજે રીવર ફ્રન્ટ પર, અંબા આવ્યા છે
આવો રે આવો સૌ ખેલૈયાઓ
લહાવો છે લહાવો લો ખેલૈયાઓ
અંબામા ની સાથે ગરબે રમીને
નવદુર્ગાની સાથે રાસે રમીને....હે..આવ્યા છે આવ્યા આવ્યા છે..........આજે રીવર ફ્રન્ટ પર દુર્ગા આવ્યા છે
ધન્ય એનું જીવન આજે થઈ જશે
માતાની સાથે જેઓ ગરબે રમશે
અંબા માની સાથે આવ્યા છે કોણ
મા સાથે નવદુર્ગા આવ્યા છે...હે..આવ્યા છે આવ્યા છે આવ્યા છે....આજે રીવર ફ્રન્ટ પર લક્ષ્મી આવ્યા છે
અભણ અમદાવાદી
मन किसी का मत दुखाया कीजिए
प्रेम का दीपक जलाया कीजिए
रास्ते में प्रेम यात्री के सदा
फूल और चंदन बिछाया कीजिए
तोड़ना अच्छा नहीं है फूल को
माली का दिल मत दुखाया कीजिए
खर्च करना बात अच्छी है मगर
चार पैसे भी बचाया कीजिए
घोलकर संस्कार घुट्टी में ‘कुमार’
रोज बच्चों को पिलाया कीजिए
कुमार अहमदाबादी
साथ बैठे बैठकर जब बात सुलझाने लगे
हुस्न एवं इश्क दोनों मन को बहलाने लगे
बात सादी थी सरल पर यार जब माना नहीं
प्रेम्मपूर्वक यार को हम बात समझाने लगे
प्रेम गंगा में बहाया इस कुशलता से की अब
दोपहर में चांद तारे नज़र आने लगे
आंसुओं को त्याग दो स्वीकार कर लो आज को
बाग में भी फूल नवरंगी है जब आने लगे
याद आए जब मधुर पल तृप्ति के तब ए ‘कुमार’
कामिनी को कल्पना के फूल महकाने लगे
कुमार अहमदाबादी
मन किसी का मत दुखाया कीजिए
प्रेम का दीपक जलाया कीजिए
रास्ते में प्रेम यात्री के सदा
फूल औ’ मोती बिछाया कीजिए
तोड़ना अच्छा नहीं है फूल को
माली का मन मत दुखाया कीजिए
खर्च करना बात अच्छी है मगर
चार पैसे भी बचाया कीजिए
घोलकर संस्कार घुट्टी में ‘कुमार’
रोज बच्चों को पिलाया कीजिए
कुमार अहमदाबादी
राधिका ने गीत गाया प्रेम काबांसुरी ने राग छेड़ा प्रेम कारागधारा प्रेमधारा यूं बहीकी बहा गगरी से झरना प्रेम काकुमार अहमदाबादी
राधिका ने गीत गाया प्रेम का
बांसुरी ने राग छेड़ा प्रेम का
रागधारा प्रेमधारा यूं बही
की बहा गगरी से झरना प्रेम का
*कुमार अहमदाबादी*
ये नजर मार डालेगी मुझे ए सनम
ये अलकलट चुराएगी मुझे ए सनम
जानता हूं कला को मानता भी हूं मैं
शाम को तू सताएगी मुझे ए सनम
कुमार अहमदाबादी
शाम की बेला मधुर है प्यास भी गहरी है
सांस लेने के लिये जब जिंदगी ठहरी है
सोचता हूं घूंट दो या चार मैं पी ही लूं
रात होनेवाली है औ’ रात भी गहरी है
कुमार अहमदाबादी
सांस लेने के लिये जब जिंदगी ठहरी है
सोचता हूं घूंट दो या चार मैं पी ही लूं
रात होनेवाली है औ’ रात भी गहरी है
कुमार अहमदाबादी
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी