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बुधवार, जनवरी 31

आधी चुस्की और गम(रुबाई)

आधी आधी चुस्की लेकर पीना

गहरे घावों को सहलाकर जीना

इन से जो मिलता है वो पाना है

तो सीखो प्यारे तुम गम को पीना

कुमार अहमदाबादी  

मंगलवार, जनवरी 30

मितभाषी पत्नी

आकाश भाग्यशाली था. उसे मितभाषी पत्नी मिली थी। उस की पत्नी हमेशा आधा अधूरा वाक्य बोलती थी। जैसे उसे पति को या बच्चों को खाना खाने के लिए कहना हो तो पूरा वाक्य खाना खा लो नहीं कहती थी।

इतना ही कहती थी खाना चाय बनाकर ये नहीं कहती थी कि चाय पी लो। इतना ही कहती थी चाय वो कभी प्यार से पति को डांटती भी तो भी क्या बात है वाह मेरे भोले राजा ना कहकर सिर्फ इतना सा कहती थी वाह भोले राजा

परमात्मा की असीम कृपा हो तो ही एसी मितभाषी पत्नी मिलती है। हां, उस में एक और गुण भी है। वो अपने अधूरे वाक्यों के बचे हुए शब्दों का वाग्युद्ध के दौरान एक साथ उपयोग कर लेती है।

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, जनवरी 29

फरमाइश (रुबाई)


 साड़ी अच्छी बनारसी ही लाना

काजल बिन्दी मस्कारा ले आना

सजना है प्यारे सजना की खातिर

रेशम की कंचुकी भी लेकर आना

कुमार अहमदाबादी 




रविवार, जनवरी 28

मखमल की चोली(रुबाई)

 


मादक स्वर में जीवनसाथी बोली

मौसम के रस की प्यासी है झोली

पूरी कर दो मेरी इक फरमाइश

पहना दो मलमल की पीली चोली

कुमार अहमदाबादी


शनिवार, जनवरी 27

बसंती चोली(रुबाई)





आवाज़ में अमरत वो मिलाकर बोली

मदमस्त मधुर प्रेम से भर दो झोली

फागुन का महीना आ गया है प्रीतम

मैंने आज पहनी है बसंती चोली

कुमार अहमदाबादी 


गुरुवार, जनवरी 25

बनती है राग मालिकाएं(रुबाई)



मनमोहक आंख कथकली करती है

सांसों से राग रागिणी बजती है

बनती है राग मालिकाएं नूतन

साजन से जब भी प्रेमिका मिलती है

कुमार अहमदाबादी 


 

बुधवार, जनवरी 24

पंचेन्द्रियों ने ठगा है? (भावार्थ)


 इह हि मधुरगीतं नृत्तमेद्रसोऽयं

स्फुरति परिमलोऽसौ स्पर्श एषस्तनानाम् ।

इति हतपरमाथैरिन्द्रियैर्भ्राम्यमाण:

स्वहितकरणधूतैंः पञ्चविभिर्वञ्चितोऽस्मि।। ५५।।

ये वास्तव में एक मधुर गीत है। ये नृत्य है। रस प्रकट हो रहा है। सुगंधित परिमल है और स्तनों का स्पर्श है। एसा मानकर सच्ची बात को दबाकर सिर्फ अपना भला करने में काबिल पांचों इन्द्रियों ने मुझे भरमाकर ठगा है। 

श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक के मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गुजराती में किये गये भावानुवाद का हिन्दी भावानुवाद 

हिन्दी अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 


राग जयजयवंती (शंकर जयकिशन और मदन मोहन का)

सिने मेजिक

मूल गुजराती लेखक = अजित पोपट

(संक्षेपानुवाद)



(राग जयजयवंती शंकर जयकिशन और मदन मोहन का )

पार्श्व गायक या गायिका जिस अभिनेता या अभिनेत्री के लिए गीत गाते हैं. वो अभिनेता या अभिनेत्री अगर संगीत का जानकार हों तो सोने में सुगंध मिल जाती है. लता मंगेशकर को एक इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि अगर आप को किसी पुरुष कलाकार के लिए गाना हो तो आप किस के लिए गाना पसंद करेंगी? लताजी ने बिना हिचके जवाब दिया की दिलीप कुमार के लिए और जब अभिनेता या अभिनेत्री संगीत के अभ्यासी हो तो संगीतकार के लिए तर्ज़ बनाना एक चुनौतीभरा काम हो जाता है. लेकिन सृजनात्मक संतोष भी मिलता है.
आज बात करते है राग जयजयवंती की. सीमा मूवी का 'मनमोहना बड़े जूठे ' राग जयजयवंती पर बना एक लाजवाब गीत है. इस गीत को संगीतकार शंकर-जयकिशन ने स्वरबद्ध किया है.
सीमा मूवी में पारिवारिक संजोगों के अधीन; अपनी अस्मत बचाने के लिए खून करनेवाली लड़की की कहानी है. जो किसी के काबू में नहीं रहती. जिसे रिमांड होम में रखा जाता है. बलराज साहनी ने गृहपति और अल्हड़ युवती की भूमिका नूतन ने निभाई थी.
मनमोहना गीत को नूतन पर फिल्माया गया था. नूतन खुद भारतीय शास्त्रीय संगीत की अभ्यासी और गायिका थी. इसलिए उस गीत पर अभिनय करना उस के लिए आसान था. उस गीत में शंकर-जयकिशन ने सितार, तबले और मृदंग का बेगतरीन प्रयोग किया था. हालांकि प्रयोगों के कारण गीत कुछ मुश्किल भी हो बन गया था. नूतन की जगह कोई और अभिनेत्री होती तो निर्देशक कल लॉन्ग शॉट से काम चलाना पड़ता. लेकिन चूँकि नूतन खुद संगीत की जानकार थीं इसलिए निर्देशक ने क्लोज़ शॉट भी लिए थे. बेहतरीन स्वरनियोजन और उस पर नूतन के लाजवाब अभिनय के कारण वो गीत जैसे गुलाब की तरह खिल गया है. छह मात्रा के दादरा ताल में बने गीत में लताजी ने अपनी गायकी से चार चाँद लगा दिए हैं.
दूसरी तरफ उन्हीं शंकर-जयकिशन ने राग जयजयवंती पर आधारित दूसरा प्रयोग जो किया. वो जरा अलग प्रकार का था. शंकर-जयकिशन ने कवि शैलेन्द्र द्वारा निर्मित तीसरी कसम के लिए भी एक गीत राग जयजयवंती पर बनाया था. वो गीत भी लताजी ने गाया था. जो की दादरा से मिलते जुलते ताल हींच ताल में था. वो गीत था 'मारे गये गुलफ़ाम....' इस गीत में स्वरों औऱ शब्दों का वजन अलग अलग था. ये गीत ने अपना एक अलग प्रभाव छोड़ता है.
इस कोलम के लेखक यानि अजित पोपट को राग जयजयवंती पर बना. जो गीत सबसे ज्यादा पसंद है. वो ताजमहल मूवी के लिये कव्वाली के रंग में बना गीत 'चाँदी का बदन सोने की नजर, उस पर ये नजारा क्या कहिये'

मूल लेखक- अजित पोपट
(लेख का ये संक्षिप्त स्वरूप है)

अनुवादक- महेश सोनी 

बीत गई सो बात गई

वर्तमान में जीना जरुरी है. इस का मतलब ये नहीं की भूतकाल को भूल जाएं. लेकिन हर पल हर घड़ी भूतकाल की बातें करते रहना गलत है. 

आज ये बात क्यों छेड़ी? दरअसल आज के एक अखबार में एक लेख पढ़ा. उस लेख के आरंभ में एक बुजुर्ग की बात है. वो बुजुर्ग हमेशा अपने मित्रों के सामने ये रोना रोते रहते थे कि मेरे पिता ने हमेशा मेरे साथ अन्याय किया. हमेशा मेरे उस भाई का साथ दिया. उस के साथ ही सदा हमदर्दी रखी. 

ये बातें करने वाले मित्र रोज सुबह बागीचे में जाते तब बागीचे के अपने मित्रों के सामने ये बातें कहते थे, बल्कि कहना चाहिए. रोना रोते रहते थे. बागीचे के मित्र सुन लेते थे. कभी कुछ नहीं कहते थे. 

एक दिन एक मित्र ने पूछ लिया कि आप के पिता जी इस वक्त कितने वर्षों के हैं. तब रोतडु मित्र ने जवाब दिया कि उन्हें गुजरे पैंतीस वर्ष हो गए हैं. ये सुनकर एक बार तो बागीचे के मित्र को समझ नहीं आया की वो क्या कहें! लेकिन फिर उन्होंने कड़क शब्दों में मित्र को टोकते हुए कहा *आप को शर्म आनी चाहिए. जिस इंसान को गुजरे हुए पैंतीस वर्ष हो गए हैं. आज भी आप उन के प्रति एसी भावना रखते हैं. एसे विचार रखते हैं. वो भी उस व्यक्ति के लिए जो तुम्हारे पिता थे. आपने उन की उन बातों को याद रखा. जो आप को अच्छी नहीं लगी. लेकिन उस के अलावा उन बातों का कभी उल्लेख नहीं किया. जो आप को अच्छी लगी हो या उन कदमों का कभी जिक्र नहीं किया. जो उन्होंने आप के हितों के लिए उठाए थे. एसा तो संभव ही नहीं की आप के पिता ने आप के लिए कोई एसा कदम उठाया ही ना हो. जो आप को अच्छा ना लगा हो. आपने हमेशा पिता के वर्तन के एक पक्ष को ही देखा. बस उसी से चिपक गए. अपने मन में उन की एक छवि बना ली. उसी छवि के गीत गाते रहे. 

ये सुनकर वो बुजुर्ग आत्मग्लानि से भर गए. सिसक सिसक कर रोने लगे.

कई बार एसा होता है. व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार के व्यक्तित्व के एक ही वर्तन को पकड़ कर बैठ जाता है. उस व्यक्ति के अपने प्रति पूरे वाणी वर्तन का अभ्यास ही नहीं करता. बस किसी एक घटना या गुण के बारे में बातें करता रहता है. फलां ने मेरे साथ एसा किया.

अगर वास्तव में वैसा किया हो तो भी जब उस घटना को बीस तीस या चालीस वर्ष बीतने के बाद भी याद कर के उल्लेख करते रहना कहां तक उचित है? कतई उचित नहीं है. जो बीत गया वो बीत गया. वो अगर हमारे लिए अच्छा नहीं था तो उसे भूल जाना ही बेहतर है. ना भूलने पर वो घाव बन जाता है. जो कभी कभी बहुत तकलीफ देता है. हमारी सनातन संस्कृति में कहावत भी है कि*बीत गई सो बात गई*

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, जनवरी 23

नैन कटाक्षों का असर(भावानुवाद)

 


एताश्चलद्वलयसंहतिमेखलोत्थ-

झंकारनूपुरपराजितराजहंस्यः।

कुर्वन्ति सत्य न मनो विवशं तरुण्यो

वित्रस्तमुग्धहरिणीसदृशैः कटाक्षैः

।।८।।

चलते समय कंकणों के हिलने से हो रही ध्वनि(आवाज) एवं कटिमेखला (कमरबंध एक जेवर) और पायल के मधुर झंकार से जिसने राजहंसीनीओं भी पराजित किया है। वो तरुणीयां त्रस्त मुग्ध हिरनीओं जैसे नैन कटाक्षों से किस के मन को विचलित नहीं कर सकती।

श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक के मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गुजराती में किये गये भावानुवाद का हिन्दी अनुवाद 

हिन्दी अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 


राम आएंगे(मुक्तक)

 



झूमो औ' नाचो श्री राम आए हैं

कौशल्यानंदन श्री राम आए हैं

नवभारत के नव निर्मित मंदिर में

जन कल्याणार्थे श्री राम आए हैं

कुमार अहमदाबादी

राम, वन में मत जाना

राम अब वन में मत जाना
मेरे राम,
           आप का ये भक्त आप से हाथ जोड़कर विनती कर रहा है। अब कभी वन में मत जाना। जब तुमने महाराज दशरथ के घर जन्म लिया था। तब चौदह वर्षों के लिये वन में चले गये थे। जब तुम्हें मंदिर में स्थान मिला तो विधर्मियों द्वारा घर से वंचित कर दिया गया। विधर्मियों के कुकृत्य के कारण तुम्हें लगभग अर्ध सहस्राब्दी तक गृह विहीन रहना पड़ा। जो वनवास ही कहा जायेगा। 
            मगर, अब भाग्य विधाता ने एक राजब्रह्मर्षि को निमित्त बनाया है। उस राजब्रह्मर्षि के शासनकाल में  ने तुम अपने मंदिर में विराजमान हुए हो। 
            हम सब राम भक्तों की तुम से अश्रु सहित करबद्ध विनती है। अहमदाबादी कभी  वनवास को मत जाना। 
            अब हम राम भक्त तुम्हें वचन देते हैं। अब अगर किसी देसी या विदेशी स्वधर्मी या परधर्मी आततायी या आततायियों ने तुम्हें वनवास देने या भेजने का सोचा या प्रयास किया तो हम सनातन धर्मी उस देसी या विदेशी व्यक्ति विचार या विचारधारा को कृष्ण नीति और चाणक्य नीति के अनुसार जडमूल से नष्ट कर देंगेः और ये बात हम तुम्हारे नाम का प्रण यानि वचन तुम्हें देकर कहते हैं। ये वचन हम रघुवंश  की परंपरा *प्राण जाई पर वचनु ना जाई* के अनुसार निभाएंगे।
एक सनातन पंथी 
राम भक्त 

होठ क्यों कुचलती हो(श्लोक का भावार्थ)


केशानाकुलयन्दृशो मुकुलयन्वासो बलादाक्षिप-

न्नातन्वन्पुलकोद्गमं प्राकट्यन्नावेगकम्पं शनैः।

वारंवारमुदारसीत्कृतकृतो दन्तच्छदान्पीड्यन्

प्रायः शैशिर एष संप्रति मरुत्कान्तासु कान्तायते।। 

।।१००।।

बाल को बिखेर देती है। आंखें बंद कर लेती है। वस्त्र को जोर से खिंच लेती है। आनंद विभोर होकर मस्ती से सिसकारे करती है। आनंद में डूब कर आवेग पूर्वक शरीर को कपकपाती है। थोडी थोडी देर में मीठी किलकारियां करती है। होठों को कुचलती है। इस शिशिर का वायु अभी यानि शिशिर में कांताओं के साथ यानि पत्नीयों, प्रेमिकाओं एवं सुंदर स्त्रियों के साथ एसा व्यवहार करता है।

श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक के गुजराती भावानुवाद का हिन्दी अनुवाद

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 


सोमवार, जनवरी 22

राजर्षि या ब्रह्मर्षि?

कुंडली याद आ गयी

सब से पहले सब को भगवान राम के मूर्ति स्वरुप में आगमन की आप सब को बहुत बहुत बधाई। कल टीवी पर भगवान राम के मंदिर में उन की प्राण प्रतिष्ठा का पूरा कार्यक्रम देखा। कार्यक्रम देखते देखते दो बातें मन में आयी। जो आप के समक्ष रख रहा हूं। 

 नरेन्द्र मोदी ने जब पहली बार प्रधानमंत्री पद की सौगंध ली थी। उस समय अखबार में उन की कुंडली छपी थी। साथ में लेख भी छपा था। 

नरेन्द्र मोदी की कुंडली बनाने वाले ने कुंडली बनाते समय कहा था। ये बच्चा अगर अपने जीवन में धर्म क्षेत्र में जायेगा तो शंकराचार्य जैसे पद को प्राप्त करेगा; और अगर राजनीति में जायेगा तो चक्रवर्ती सम्राट जैसी सिद्धि और कीर्ति को प्राप्त करेगा। 

कल जब प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान चल रहा था। उस समय जो दृश्यावली टीवी पर आ रही थी। वो आपने भी देखी होगी। वहां जो गणमान्य अतिथि बैठे थे। वे एसे थे कि एक से ज्यादा महत्वपूर्ण दूसरा और दूसरे से तीसरा ज्यादा महत्वपूर्ण था। राजनीति, धर्म क्षेत्र, खेल जगत सामाजिक सेवक अर्थात प्रत्येक क्षेत्र के अति महत्वपूर्ण व्यक्ति विराजमान थे। इन सब की उपस्थिति में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उस कार्य को परिपूर्ण किया। जिसे परिपूर्ण करने में लगभग आधी सहस्त्राब्दी लग गयी। आम आम आदमी के शब्दों में कहें तो पांच सौ साल लग गये। 

उस कार्य को जो व्यक्ति पूर्ण कर रहा था। उस का वाणी व्यवहार एवं मंदिर‌ को भौतिक स्वरूप देने का कर्म किसी चक्रवर्ती सम्राट या शंकराचार्य के के हाथों से होने वाले कार्यों से कम महत्वपूर्ण नहीं है। ये कार्य करते समय नरेन्द्र मोदी के मुख पर जो आभा थी। वो अलौकिक थी; दिव्य थी। 

उस पर मुझे कुंडली याद आ गयी। कुंडली याद आने पर दिल ने कहा। नरेन्द्र मोदी वो कर्म कर रहे हैं या वैसा कर्म कर रहे हैं। जैसा प्रायः किसी धर्माचार्य के कर कमलों से होता है। जब की नरेन्द्र मोदी एक राज नेता हैं। लेख का अंत या सार समझो तो सार इन शब्दों से करुंगा। नरेन्द्र मोदी ने राजर्षि होते हुये ब्रह्मर्षि का कार्य किया है।

कुमार अहमदाबादी

रविवार, जनवरी 21

कुनण रो लटकणियो (राजस्थानी रुबाई)

 


कुंनण रो लटकणियो पेरावो जी

हीरे रो तीमणियो पेरावो जी

म्हारा मीठा नखरा उठावो जी

हाथों सूं बोरीयो पेरावो जी

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, जनवरी 19

निर्मल धारा(रुबाई)

 आंसू आते हैं तो आने दे यार

हंसी आती है तो आने दे यार 

बहता पानी ही निर्मल होता है 

निर्मल धारा को बह जाने दे यार

  कुमार अहमदाबादी 



गुरुवार, जनवरी 18

कोई और सुंदर नहीं है (भावार्थ)


असाराः सर्वे ते विरतिविरसाः  पापविषयाः

जुगुप्स्यन्तां यद्वा ननु सकल दोषास्पदमिति।

तथाप्येतद्भूमौ न हि परहितात्पुण्यमधिकं

न चास्मिन्संसारे कुवलयदृशो रम्यमपरम्।।३५।।

पाप से भरे और अंत में निरर्थक हो जाने वाले सारे विषय असार हैं; या फिर वे दोषों के धाम हैं; एसा मानकर आप चाहे उस की बुराई करें। लेकिन इस भूमि पर परोपकार जैसा अन्य कोई पुण्य नहीं है। इस संसार में कोई अन्य इन नीलकमल से नयनों वाली सुंदरीओं से ज्यादा सुंदर नहीं है। 

श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के पैंतीसवें श्लोक के गुजराती भावानुवाद का हिन्दी अनुवाद

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 



शंकराचार्यों का अपमान क्यों करें?

इन दिनों शंकराचार्यों के विरुद्ध की पोस्ट वायरल हो रही है. शंकराचार्यों वाली घटना को क्यों इतना महत्व दिया जा रहा है. 

इस घटना को दूसरे दृष्टिकोण से भी तो देखिए. क्या ये हिंदुओं को आपस में लड़ाने ने की अपने ही उन धर्माचार्यों के विरुद्ध करने का षड्यंत्र नहीं हो सकता? उन के ना जाने की घटना को जान बूझकर इतना उछाला जा रहा है कि सनातन धर्मी अपने ही धर्माचार्यों के विरुद्ध हो जाए. क्या एसा षड्यंत्र नहीं हो सकता? ये मानकर भी लें की चारों शंकराचार्य गलत हैं तो भी हम क्यों उन के विरुद्ध कोई बात करें? वे जिस पद पर बैठे हैं. उस पद पर बैठकर अगर कोई बात कह रहे हैं तो कम से कम एक बार तो उन की बात पर उन के मुद्दे पर विचार कर के देखिए. अगर वे गलत भी हैं तो भी उन के विरुद्ध विष वमन कर के या उन का बॉयकॉट कर के क्या सनातन धर्मी अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार रहे हैं. वे अगर इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठकर कोई मुद्दा कह रहे। हैं तो कोई तो कारण होगा. 

कहीं एसा तो नहीं. कोई जानबूझकर हमें हमारे धर्माचार्यों के विरुद्ध उकसा तो नहीं रहा. आज लगभग सब जानते हैं. भारत का पुनः शक्तिशाली बनना पश्चिमी जगत को रास नहीं आ रहा है. पश्चिम की कई ताकतें भारत को कमजोर करने में लगी हुई है. मोदी जी स्वयं इस बात का उल्लेख अपने प्रवचनों में कर चुके हैं. एसे वातावरण में अगर शंकराचार्य किसी भी कारण से विरोध कर रहे हैं तो ठीक है. हम सिर्फ इतना कहकर की ठीक है आप का विरोध सिर माथे पर बाकी कार्य आगे बढ़ा सकते हैं. उन के विरोध को लेकर उन के विरुद्ध उल जलूल बातें करने की या उन का बहिष्कार करने की क्या आवश्यकता है. ठीक हैं उन्हें नहीं आना ना आए. लेकिन याद रखिए. उन के लिए अपमानजनक बातें कर के हम अपने ही धर्म के शिखर पुरुषों पर लांछन लगा रहे हैं और इस प्रकार विश्व को हम पर हंसने का अवसर प्रदान कर रहे हैं. 

मेरी आप सब से हाथ जोड़कर विनंती है. शंकराचार्यों के विरुद्ध पोस्ट आए तो उसे फॉरवर्ड ना कर के डिलीट कर दीजिए. 

शंकराचार्य सही है या गलत; लेकिन हमें हमारे धर्म के सब से ऊंचे पद पर बैठे व्यक्तियों के अपमान के कार्य में किसी भी तरह सहयोग नहीं करना चाहिए. 

कुमार अहमदाबादी

बुधवार, जनवरी 17

हार सा जेवर नहीं(मुक्तक)

 

याद रख तू पास तेरे रत्न है पत्थर नहीं

रत्न सा अनमोल कोई दूसरा कंकर नहीं

रत्न तेरे पास है तू रत्न को जड़ स्वर्ण में

रत्न जड़ित हार जैसा दूसरा जेवर नहीं

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, जनवरी 15

इन्कलाबी चुनरी (रुबाई)



 नखरे करती है ये गुलाबी चुनरी
है ठस्सेदार ये नवाबी चुनरी
यूँ तो कोमल नाजुक है पर वैसे
है ये थोडी सी इन्कलाबी चुनरी
कुमार अहमदाबादी 

મનુષ્યતા

સમ્રાટમાં નથી અને દરવેશમાં નથી
મારી મનુષ્યતા કોઈ ગણવેશમાં નથી

ભગવતીકુમાર શર્મા

ગણવેશ એટલે નક્કી કરેલો પહેરવેશ. તમને ખબર હશે કે સમાજના લગભગ દરેક વર્ગ માટે ખાસ પ્રકારના, ખાસ રંગના ગણવેશ નક્કી કરાયેલા છે. ખાસ કરીને માનવી વ્યવસાયમાં કાર્યરત હોય ત્યારે એ ગણવેશમાં હોય છે. ઘણા વ્યવસાય કે સેવાઓ એવા છે કે ગણવેશમાં ન હોવું; ગેરશિસ્ત મનાય છે. પોલીસો માટે ખાખી કે બ્લ્યુ વર્દી, વકીલો માટે કાળો કોટ નક્કી કરાયેલા છે. ડોક્ટરો, નર્સો તથા એરફોર્સ માટે સફેદ, કુલી માટે લાલ, પાયદળ માટે લીલોતરીને મળતા રંગનો ગણવેશ નક્કી કરાયેલા છે. દરેક સ્કૂલનો પોતાનો આગવો ગણવેશ હોય છે. ઓફીસો શોરૂમોમાં કર્મચારીઓ અને સેલ્સમેનોના વસ્ત્રો સરખા હોય છે. ગણવેશ માનવીનો વ્યવસાય અથવા સામાજીક દરજ્જો દર્શાવે છે પણ દર્શાવે એવા ગણવેશનું નિર્માણ થયુ નથી. માનવતા ગણવેશની મોહતાજ નથી. એ એક સમ્રાટમાં અને એક ફકીરમાં પણ હોઈ શકે છે. બંનેમાં ન હોય એવું ય હોઈ શકે.

ટૂંકમાં ગણવેશ કે અન્ય બાહ્ય દેખાવ માનવીનો દરજજો વ્યક્ત કરી શકે પણ માનવતાને વ્યક્ત ન કરી શકે.

તા.૨૮।૧૦।૨૦૧૦ના રોજ જયહિન્દમાં મારી કોલમ 'અર્જ કરતે હૈં'માં છપાયેલ લેખનો અંશ
અભણ અમદાવાદી

कलम के सिपाही


कलम के सिपाही हम है, दुश्मन की तबाही हम हैं।
पी.एम. के भाई हम है, परबत व राइ हम हैं ।.... कलम के
सत्य की शहनाई और जूठ की रुसवाई हम हैं।
शब्द की सच्चाई और अर्थ की गहराई हम हैं..... कलम के
चिंतक का चिंतन और दर्शन का मंथन हम हैं।
धर्मों का संगम और एकता का बंधन हम हैं ... कलम के
विचार की रवानी और घटना की जुबानी हम हैं।
जीवन की जवानी और जोश की कहानी हम हैं...कलम के
रचना की खुद्दारी और भाषा के मदारी हम हैं।
प्याले की खुमारी और हार-जीत करारी हम हैं....कलम के
पेट की लाचारी और मानसिक बीमारी हम हैं।
ममता एक कंवारी और जिम्मेदार फरारी हम हैं....कलम के
रूप के शिकारी और वीणा के पुजारी हम हैं।
दुल्हे की दुलारी और मीरा के मुरारी हम हैं....कलम के
प्रेम की पुरवाई और जानम की जुदाई हम हैं।
तन्हाई में महफ़िल व महफ़िल की तरुणाई हम हैं.... कलम के
सपनों के रचैता और अर्थ हीन फजीता हम हैं।
भावों की सरिता और 'कुमार' की कविता हम हैं... कलम के
[ये कविता तब लिखी गई थी जब बाजपाईजी पी.एम. थे]
[आज सी.एम. {नरेन्द्र मोदी} लिखा जा सकता है]

कर सकते हो बरजोरी(रुबाई)


 प्यारे साजन रंग दो चुनरी मोरी

अब तक है बेदाग़ व बिलकुल कोरी

ये चंचल नटखट हो गयी है बालिग़

चाहो तो कर सकते हो बरजोरी

कुमार अहमदाबादी 


शनिवार, जनवरी 13

दुर्गम पर्वत

 


कामिनीकायकान्तारे कुचपर्वतदुर्गमे

संचर मनःपांथ तत्रास्ते स्मतस्करः‌।।५३।।


अरे मन मुसाफिर! स्तनरुपी दुर्गम पर्वत माला, कामिनी की काया के इस वन में मत घूमना। उस वन में कामदेव नाम का चोर 

बसता है।

श्री भर्तुहरि विरचित श्रंगार शतक के श्लोक का हिन्दी भावानुवाद 

भावानुवादक - कुमार अहमदाबादी 

गुरुवार, जनवरी 11

चंद्रमुखी मीनाक्षी(रुबाई)


 कोमल वदनी चंद्रमुखी सोनाक्षी

भोली भाली प्यासी युवा कामाक्षी

भर देती है सुगंध से तन मन को

वाणी वर्तन से सुमधुर मीनाक्षी

कुमार अहमदाबादी 

पुण्य से प्राप्ति(श्लोक का भावानुवाद)

 तस्यास्तनौ  यदि  घनौ  जघनं च हारि

वस्त्रं च चारु तव चित्त किमाकुलत्वम्

पुण्यं कुरुष्व यदि तेषु तवास्ति वाञ्छा

पुण्यैर्विना न हि भवन्ति समीहितार्थाः


भावार्थ

उस सुंदरी के स्तन पुष्ठ हैं और मनोहारी नितंब हैं। मुख भी बहुत सुंदर है; तो हे मन, तू क्यों व्याकुल हो रहा है। अगर तू उसे प्राप्त करना चाहता है तो पुण्य कर। पुण्य किये बिना मन जो प्राप्त करना चाहे। वो प्राप्त नहीं होता।

श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के १८ वें श्लोक के गुजराती भावानुवाद का हिन्दी अनुवाद

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 

बुधवार, जनवरी 10

मेरा नखरा(रुबाई)

 




आओ ना साजन घिर आये बदरा

ना आये तो बह जायेगा कजरा

आकर सावन में एसे नहलाओ

पूरा हो जाये मेरा हर नखरा 

कुमार अहमदाबादी 

दो रुबाई

 कई वर्षों पहले ओशो के प्रवचन की एक कैसेट सुनी थी। उस में ओशो ने भगवान बुद्ध का एक किस्सा सुनाया था। आज वो किस्सा और भगवान बुद्ध के उत्तर के सार पर आधारित दो रुबाई खाने पीने वालों के शौकीनों के लिये पेश करता हूँ। 



*किस्सा*

भगवान बुद्ध के सामने एक बार दुविधा आ गयी। बुद्ध ने अपने अनुयायीयों से कहा था। जो तुम्हारे भिक्षापात्र में आ जाये। प्रेम से उस का स्वीकार कर लेना। एक अनुयायी के भिक्षापात्र में एक बार मांस का टुकडा चील के पंजे से छुटकर आकर गिर पडा। अनुयायी दुविधा में पड़ गया। उसने भगवान बुद्ध को दुविधा बताकर सलाह मांगी की इस का क्या करुं? क्यों कि आपने कहा है, भिक्षापात्र में जो आ जाये; उस का प्रेम से स्वीकार करना। भगवान बुद्ध ने जो उत्तर दिया था। उस के सार पर आधारित रुबाई पेश है।



*रुबाई*

इतनी उतनी जितनी है प्याले में

है तुम्हारी जितनी है प्याले में

प्याले में जितनी आ गयी है पी लो

सोचो मत की कितनी है प्याले में


इतना उतना जितना है थाली में

है तुम्हारा जितना है थाली में

थाली में जो भी आ गया है खा लो

सोचो मत की कितना है थाली में

कुमार अहमदाबादी 

सोमवार, जनवरी 8

बसरे का मोती(रुबाई)



 जब भी तुम नखरे करती हो जानम
तब ज्यादा सुंदर दिखती हो जानम
छिड़ जाती हो जब मेरे शब्दों से
बसरे का मोती लगती हो जानम
कुमार अहमदाबादी

शनिवार, जनवरी 6

झूठन(रुबाई)


 
बोला था लालच करना मत साजन
लेकिन तुमने ठूंसे अनहद व्यंजन
भोजन अपनी मरजी से करना था
फिर थाली में क्यों छोडी है झूठन
कुमार अहमदाबादी

चुनरी को उड़ने मत दे (रुबाई)





चुनरी का ध्यान रख तू उड़ने मत दे
आंचल को मस्तक से गिरने मत दे
बेटी तू दो वंशों की पगड़ी है
पगड़ी को मिट्टी में मिलने मत दे
कुमार अहमदाबादी

मिट्टी के मटके का विज्ञान

कभी कभी विचार आता है। मिट्टी में एसा कौन सा गुण है। जिस के कारण उस में सिर्४पानी मिलाकर बनाये गये  बर्तन जैसे की तवा, दीपक, बडी कोठियां वगैरह मजबूत बनते हैं। मिट्टी और पानी का मिश्रण गजब की भौतिक प्रक्रिया करता है। हालांकि इस प्रक्रिया में बर्तन बनाने वाले कुंभार की कुशल योग्यता और अनुभवी सूझबूझ भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। 

दो सूक्ष्म कणों के बीच में स्थित पानी उन दोनों में खिंचाव पैदा करता है। जो दोनों को जोड़ता है। जुडाव होने के बाद मिट्टी के सारे कण जुडकर आपस में जकड़ जाते हैं। लेकिन अगर उचित मात्रा से ज्यादा पानी मिलाया जाये तो मिट्टी कीचड़ बन जाती है; इसे यूं भी समझ सकते हैं। अति सर्वत्र वर्ज्यते का नियम यहां भी असर करता है। ये कुंभार की सूझ बूझ और अनुभव तय करते हैं कि मिट्टी में कितना पानी मिलाना है। 

दो कणों के बीच का पानी सूख जाने पर मिट्टी के कणों में स्थित क्षार स्फटिक यानि सख्त कण बन जाते हैं। जो मिट्टी के कणों को आपस में जोड़कर रखने का कार्य करते हैं। मिट्टी के बर्तनों को घडने के बाद भट्ठी में आवश्यक तापमान पर सेक कर पक्का किया जाता है। पककर तैयार होने पर मिट्टी बर्तन या विविध पात्र बन जाती है। 

इस तरह सिर्फ पंच तत्वों में से तीन तत्व मिट्टी पानी और आग के उपयोग कर के भांति भांति के बरतन एवं विविध पात्र बनाये जाते हैं।

गुजरात समाचार की ता.06-012024 शनिवार की जगमग पूर्ति के पांचवें पृष्ठ पर छपे लेख का अनुवाद

पूर्ति में लेखक का नाम नहीं है

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 

शुक्रवार, जनवरी 5

खेली है एसी होली(रुबाई)

 


कहती है चुनरी कहती है चोली

रंगों से भर दी है मेरी झोली

आजीवन उतरेंगे ना अब ये रंग

साजन ने खेली है एसी होली

कुमार अहमदाबादी 

गुरुवार, जनवरी 4

सददुआएं(मुक्तक)



बावफा की हिचकियां संगीत बनती है

और उस की सददुआएं गीत बनती है

साथ लेकर ताल का जब गूंजती है तो

चाहकों के मन का वो मनमीत बनती है

कुमार अहमदाबादी 

गोवर्धन पर्वत शब्द की गहराई

गोवर्धन पर्वत भारतीय संस्कृति एवं साहित्य का एसा नाम है. जिस से कोई हिंदू या यूं कहो कोई भी सनातनी अपरिचित नहीं होगा. जैसा कि आप सब जानते हैं. आप इस पर्वत से जुड़ी घटनाओं से ही परिचित होंगे. इस गोवर्धन पर्वत से श्री कृष्ण का बहुत गहन संबंध है. किसी भी शब्द का गूढ़ार्थ समझने के लिए शब्द की रचना एवं उस की गहराई में जाना चाहिए. उस की रचना प्रक्रिया समझनी पड़ती है. उस के अक्षरों को अलग अलग कर के या संधि विच्छेद कर के समझना पड़ता है. 

      आइए गोवर्धन शब्द का संधि विच्छेद करते हैं. गोवर्धन गो वर्धन गो वर धन. गो गाय को कहते हैं. गाय को गौ गो कहा जाता है. वर परमात्मा द्वारा मिले विशेष गुण को या किसी कार्य विशेष को करने के लिए मिली सुविधा को कहते हैं. जैसे किसी आदमी का गला अच्छा हो या कोई वाद्य अच्छा बजाता हो तो हम कहते हैं. इसे सरस्वती ने स्वरों का वरदान दिया है; या यूं कहते हैं कि इसे सरस्वती का वरदान मिला है. कोई सुंदर चित्र बनाता है तब भी हम यही कहते हैं. गोवर्धन शब्द विच्छेद का तीसरा हिस्सा धन है. धन शब्द अनमोल वस्तु, व्यक्ति, संपत्ति के लिए उपयोग में लिया जाता है. इन तीन हिस्सों के अलावा गोवर्धन शब्द संधि विच्छेद गो वर्धन भी किया जा सकता है. वर्धन भी एक शब्द है. वर्धन यानि वृद्धि करने वाला. 

        इस तरह गोवर्धन शब्द की संधि विच्छेद से अलग हुए शब्दों के अर्थ समझने के बाद पूरे शब्द का जो अर्थ सामने आता है. वो क्या है? गोवर्धन यानि गौ माता की वृद्धि करने वाला. 

          गोवर्धन पर्वत से जुड़ी एक और घटना का गूढ़ार्थ अगले लेख में पेश करूंगा. 

*कुमार अहमदाबादी*

सोमवार, जनवरी 1

वो झूठे हैं(रुबाई)

 





पी ले पीने से कम होते हैं गम
पीने में क्या शरमाना छोड़ शरम
एसा जो कहते हैं वो झूठे हैं
झूठे होते हैं एसे भ्रष्ट भरम
कुमार अहमदाबादी


पीनी है तो शान से पी(रुबाई)


 गर पीनी है सुरा तो शान से पी

मर्यादा में पी और सम्मान से पी

बेहद पीकर हंगामा मत कर

अपने पैसे से पी व ईमान से पी

कुमार अहमदाबादी 

बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी