पी.एम. के भाई हम है, परबत व राइ हम हैं ।.... कलम केसत्य की शहनाई और जूठ की रुसवाई हम हैं।शब्द की सच्चाई और अर्थ की गहराई हम हैं..... कलम केचिंतक का चिंतन और दर्शन का मंथन हम हैं।धर्मों का संगम और एकता का बंधन हम हैं ... कलम केविचार की रवानी और घटना की जुबानी हम हैं।जीवन की जवानी और जोश की कहानी हम हैं...कलम केरचना की खुद्दारी और भाषा के मदारी हम हैं।प्याले की खुमारी और हार-जीत करारी हम हैं....कलम केपेट की लाचारी और मानसिक बीमारी हम हैं।ममता एक कंवारी और जिम्मेदार फरारी हम हैं....कलम केरूप के शिकारी और वीणा के पुजारी हम हैं।दुल्हे की दुलारी और मीरा के मुरारी हम हैं....कलम केप्रेम की पुरवाई और जानम की जुदाई हम हैं।तन्हाई में महफ़िल व महफ़िल की तरुणाई हम हैं.... कलम केसपनों के रचैता और अर्थ हीन फजीता हम हैं।भावों की सरिता और 'कुमार' की कविता हम हैं... कलम के[ये कविता तब लिखी गई थी जब बाजपाईजी पी.एम. थे][आज सी.एम. {नरेन्द्र मोदी} लिखा जा सकता है]
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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सोमवार, जनवरी 15
कलम के सिपाही
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