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सोमवार, जनवरी 15

कलम के सिपाही


कलम के सिपाही हम है, दुश्मन की तबाही हम हैं।
पी.एम. के भाई हम है, परबत व राइ हम हैं ।.... कलम के
सत्य की शहनाई और जूठ की रुसवाई हम हैं।
शब्द की सच्चाई और अर्थ की गहराई हम हैं..... कलम के
चिंतक का चिंतन और दर्शन का मंथन हम हैं।
धर्मों का संगम और एकता का बंधन हम हैं ... कलम के
विचार की रवानी और घटना की जुबानी हम हैं।
जीवन की जवानी और जोश की कहानी हम हैं...कलम के
रचना की खुद्दारी और भाषा के मदारी हम हैं।
प्याले की खुमारी और हार-जीत करारी हम हैं....कलम के
पेट की लाचारी और मानसिक बीमारी हम हैं।
ममता एक कंवारी और जिम्मेदार फरारी हम हैं....कलम के
रूप के शिकारी और वीणा के पुजारी हम हैं।
दुल्हे की दुलारी और मीरा के मुरारी हम हैं....कलम के
प्रेम की पुरवाई और जानम की जुदाई हम हैं।
तन्हाई में महफ़िल व महफ़िल की तरुणाई हम हैं.... कलम के
सपनों के रचैता और अर्थ हीन फजीता हम हैं।
भावों की सरिता और 'कुमार' की कविता हम हैं... कलम के
[ये कविता तब लिखी गई थी जब बाजपाईजी पी.एम. थे]
[आज सी.एम. {नरेन्द्र मोदी} लिखा जा सकता है]

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मीठी वाणी क्यों?

  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी