राम अब वन में मत जाना
मेरे राम, आप का ये भक्त आप से हाथ जोड़कर विनती कर रहा है। अब कभी वन में मत जाना। जब तुमने महाराज दशरथ के घर जन्म लिया था। तब चौदह वर्षों के लिये वन में चले गये थे। जब तुम्हें मंदिर में स्थान मिला तो विधर्मियों द्वारा घर से वंचित कर दिया गया। विधर्मियों के कुकृत्य के कारण तुम्हें लगभग अर्ध सहस्राब्दी तक गृह विहीन रहना पड़ा। जो वनवास ही कहा जायेगा।
मगर, अब भाग्य विधाता ने एक राजब्रह्मर्षि को निमित्त बनाया है। उस राजब्रह्मर्षि के शासनकाल में ने तुम अपने मंदिर में विराजमान हुए हो।
हम सब राम भक्तों की तुम से अश्रु सहित करबद्ध विनती है। अहमदाबादी कभी वनवास को मत जाना।
अब हम राम भक्त तुम्हें वचन देते हैं। अब अगर किसी देसी या विदेशी स्वधर्मी या परधर्मी आततायी या आततायियों ने तुम्हें वनवास देने या भेजने का सोचा या प्रयास किया तो हम सनातन धर्मी उस देसी या विदेशी व्यक्ति विचार या विचारधारा को कृष्ण नीति और चाणक्य नीति के अनुसार जडमूल से नष्ट कर देंगेः और ये बात हम तुम्हारे नाम का प्रण यानि वचन तुम्हें देकर कहते हैं। ये वचन हम रघुवंश की परंपरा *प्राण जाई पर वचनु ना जाई* के अनुसार निभाएंगे।
एक सनातन पंथी
राम भक्त
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