Translate

बुधवार, जनवरी 24

पंचेन्द्रियों ने ठगा है? (भावार्थ)


 इह हि मधुरगीतं नृत्तमेद्रसोऽयं

स्फुरति परिमलोऽसौ स्पर्श एषस्तनानाम् ।

इति हतपरमाथैरिन्द्रियैर्भ्राम्यमाण:

स्वहितकरणधूतैंः पञ्चविभिर्वञ्चितोऽस्मि।। ५५।।

ये वास्तव में एक मधुर गीत है। ये नृत्य है। रस प्रकट हो रहा है। सुगंधित परिमल है और स्तनों का स्पर्श है। एसा मानकर सच्ची बात को दबाकर सिर्फ अपना भला करने में काबिल पांचों इन्द्रियों ने मुझे भरमाकर ठगा है। 

श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक के मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गुजराती में किये गये भावानुवाद का हिन्दी भावानुवाद 

हिन्दी अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी