तस्यास्तनौ यदि घनौ जघनं च हारि
वस्त्रं च चारु तव चित्त किमाकुलत्वम्
पुण्यं कुरुष्व यदि तेषु तवास्ति वाञ्छा
पुण्यैर्विना न हि भवन्ति समीहितार्थाः
भावार्थ
उस सुंदरी के स्तन पुष्ठ हैं और मनोहारी नितंब हैं। मुख भी बहुत सुंदर है; तो हे मन, तू क्यों व्याकुल हो रहा है। अगर तू उसे प्राप्त करना चाहता है तो पुण्य कर। पुण्य किये बिना मन जो प्राप्त करना चाहे। वो प्राप्त नहीं होता।
श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के १८ वें श्लोक के गुजराती भावानुवाद का हिन्दी अनुवाद
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
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