कामिनीकायकान्तारे कुचपर्वतदुर्गमे
संचर मनःपांथ तत्रास्ते स्मतस्करः।।५३।।
अरे मन मुसाफिर! स्तनरुपी दुर्गम पर्वत माला, कामिनी की काया के इस वन में मत घूमना। उस वन में कामदेव नाम का चोर
बसता है।
श्री भर्तुहरि विरचित श्रंगार शतक के श्लोक का हिन्दी भावानुवाद
भावानुवादक - कुमार अहमदाबादी
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