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मंगलवार, जनवरी 23

नैन कटाक्षों का असर(भावानुवाद)

 


एताश्चलद्वलयसंहतिमेखलोत्थ-

झंकारनूपुरपराजितराजहंस्यः।

कुर्वन्ति सत्य न मनो विवशं तरुण्यो

वित्रस्तमुग्धहरिणीसदृशैः कटाक्षैः

।।८।।

चलते समय कंकणों के हिलने से हो रही ध्वनि(आवाज) एवं कटिमेखला (कमरबंध एक जेवर) और पायल के मधुर झंकार से जिसने राजहंसीनीओं भी पराजित किया है। वो तरुणीयां त्रस्त मुग्ध हिरनीओं जैसे नैन कटाक्षों से किस के मन को विचलित नहीं कर सकती।

श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक के मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गुजराती में किये गये भावानुवाद का हिन्दी अनुवाद 

हिन्दी अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 


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