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सोमवार, जनवरी 22

राजर्षि या ब्रह्मर्षि?

कुंडली याद आ गयी

सब से पहले सब को भगवान राम के मूर्ति स्वरुप में आगमन की आप सब को बहुत बहुत बधाई। कल टीवी पर भगवान राम के मंदिर में उन की प्राण प्रतिष्ठा का पूरा कार्यक्रम देखा। कार्यक्रम देखते देखते दो बातें मन में आयी। जो आप के समक्ष रख रहा हूं। 

 नरेन्द्र मोदी ने जब पहली बार प्रधानमंत्री पद की सौगंध ली थी। उस समय अखबार में उन की कुंडली छपी थी। साथ में लेख भी छपा था। 

नरेन्द्र मोदी की कुंडली बनाने वाले ने कुंडली बनाते समय कहा था। ये बच्चा अगर अपने जीवन में धर्म क्षेत्र में जायेगा तो शंकराचार्य जैसे पद को प्राप्त करेगा; और अगर राजनीति में जायेगा तो चक्रवर्ती सम्राट जैसी सिद्धि और कीर्ति को प्राप्त करेगा। 

कल जब प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान चल रहा था। उस समय जो दृश्यावली टीवी पर आ रही थी। वो आपने भी देखी होगी। वहां जो गणमान्य अतिथि बैठे थे। वे एसे थे कि एक से ज्यादा महत्वपूर्ण दूसरा और दूसरे से तीसरा ज्यादा महत्वपूर्ण था। राजनीति, धर्म क्षेत्र, खेल जगत सामाजिक सेवक अर्थात प्रत्येक क्षेत्र के अति महत्वपूर्ण व्यक्ति विराजमान थे। इन सब की उपस्थिति में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उस कार्य को परिपूर्ण किया। जिसे परिपूर्ण करने में लगभग आधी सहस्त्राब्दी लग गयी। आम आम आदमी के शब्दों में कहें तो पांच सौ साल लग गये। 

उस कार्य को जो व्यक्ति पूर्ण कर रहा था। उस का वाणी व्यवहार एवं मंदिर‌ को भौतिक स्वरूप देने का कर्म किसी चक्रवर्ती सम्राट या शंकराचार्य के के हाथों से होने वाले कार्यों से कम महत्वपूर्ण नहीं है। ये कार्य करते समय नरेन्द्र मोदी के मुख पर जो आभा थी। वो अलौकिक थी; दिव्य थी। 

उस पर मुझे कुंडली याद आ गयी। कुंडली याद आने पर दिल ने कहा। नरेन्द्र मोदी वो कर्म कर रहे हैं या वैसा कर्म कर रहे हैं। जैसा प्रायः किसी धर्माचार्य के कर कमलों से होता है। जब की नरेन्द्र मोदी एक राज नेता हैं। लेख का अंत या सार समझो तो सार इन शब्दों से करुंगा। नरेन्द्र मोदी ने राजर्षि होते हुये ब्रह्मर्षि का कार्य किया है।

कुमार अहमदाबादी

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