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शनिवार, जनवरी 6

झूठन(रुबाई)


 
बोला था लालच करना मत साजन
लेकिन तुमने ठूंसे अनहद व्यंजन
भोजन अपनी मरजी से करना था
फिर थाली में क्यों छोडी है झूठन
कुमार अहमदाबादी

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  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी