कुंनण रो लटकणियो पेरावो जी
हीरे रो तीमणियो पेरावो जी
म्हारा मीठा नखरा उठावो जी
हाथों सूं बोरीयो पेरावो जी
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
*मीठी वाणी का जीवन* *पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी* *नीती शतक से साभार* केयूराणि न भूषयन्ति पुरुष हारा न चन्द्रोज्जवला न स्नानं न विलेपनं न...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें