असाराः सर्वे ते विरतिविरसाः पापविषयाः
जुगुप्स्यन्तां यद्वा ननु सकल दोषास्पदमिति।
तथाप्येतद्भूमौ न हि परहितात्पुण्यमधिकं
न चास्मिन्संसारे कुवलयदृशो रम्यमपरम्।।३५।।
पाप से भरे और अंत में निरर्थक हो जाने वाले सारे विषय असार हैं; या फिर वे दोषों के धाम हैं; एसा मानकर आप चाहे उस की बुराई करें। लेकिन इस भूमि पर परोपकार जैसा अन्य कोई पुण्य नहीं है। इस संसार में कोई अन्य इन नीलकमल से नयनों वाली सुंदरीओं से ज्यादा सुंदर नहीं है।
श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के पैंतीसवें श्लोक के गुजराती भावानुवाद का हिन्दी अनुवाद
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
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