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शुक्रवार, जनवरी 19

निर्मल धारा(रुबाई)

 आंसू आते हैं तो आने दे यार

हंसी आती है तो आने दे यार 

बहता पानी ही निर्मल होता है 

निर्मल धारा को बह जाने दे यार

  कुमार अहमदाबादी 



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मीठी वाणी क्यों?

  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी