Translate

बुधवार, जनवरी 10

दो रुबाई

 कई वर्षों पहले ओशो के प्रवचन की एक कैसेट सुनी थी। उस में ओशो ने भगवान बुद्ध का एक किस्सा सुनाया था। आज वो किस्सा और भगवान बुद्ध के उत्तर के सार पर आधारित दो रुबाई खाने पीने वालों के शौकीनों के लिये पेश करता हूँ। 



*किस्सा*

भगवान बुद्ध के सामने एक बार दुविधा आ गयी। बुद्ध ने अपने अनुयायीयों से कहा था। जो तुम्हारे भिक्षापात्र में आ जाये। प्रेम से उस का स्वीकार कर लेना। एक अनुयायी के भिक्षापात्र में एक बार मांस का टुकडा चील के पंजे से छुटकर आकर गिर पडा। अनुयायी दुविधा में पड़ गया। उसने भगवान बुद्ध को दुविधा बताकर सलाह मांगी की इस का क्या करुं? क्यों कि आपने कहा है, भिक्षापात्र में जो आ जाये; उस का प्रेम से स्वीकार करना। भगवान बुद्ध ने जो उत्तर दिया था। उस के सार पर आधारित रुबाई पेश है।



*रुबाई*

इतनी उतनी जितनी है प्याले में

है तुम्हारी जितनी है प्याले में

प्याले में जितनी आ गयी है पी लो

सोचो मत की कितनी है प्याले में


इतना उतना जितना है थाली में

है तुम्हारा जितना है थाली में

थाली में जो भी आ गया है खा लो

सोचो मत की कितना है थाली में

कुमार अहमदाबादी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी