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शनिवार, जुलाई 15

स्वप्न को हम वास्तविकता यूँ बनाते हैं(गीत)

स्वप्न को हम वास्तविकता यूँ बनाते हैं 

नर्मदा का नीर साबर में बहाते हैं   

             

हो सुलगती रेत या फिर बर्फ या पानी

संकटो में पांव हिम्मत से बढ़ाते हैं


लक्ष्य ऊँचे प्राप्त करने है कहाँ आसान

गुरुशिखर तक ठोकरें खाकर भी जाते हैं

     

भूमि ये वनराज की, सरदार, गाँधी की

राष्ट्र का जो नव-सृजन कर के दिखाते हैं


शून्य, प्रेमानंद, अखो, नरसिंह, कलापी से

काव्य-धारा भिन्न छंदों में बहाते हैं

कुमार अहमदाबादी  

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