एक हल
साथ चल
कल था कल
कल है कल
खो गया
हाथ मल
भाई है
आत्मबल
बात अब
मत बदल
मत बहा
व्यर्थ जल
तोड़ मत
आज फल
लो गया
पल में पल
मान जा
मत बदल
तू किसी
को न खल
शांति से
ख़ोज हल
ए कुमार
अब तू टल
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम जग में सब को मीठापन भाता है मीठी वाणी से होते सारे काम कुमार अहमदाबादी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें