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शुक्रवार, जुलाई 21

एक हल (ग़ज़ल)

एक हल

साथ चल


कल था कल

कल है कल


खो गया 

हाथ मल


भाई है

आत्मबल


बात अब

मत बदल


मत बहा

व्यर्थ जल


तोड़ मत 

आज फल


लो गया

पल में पल


मान जा 

मत बदल


तू किसी

को न खल


शांति से

ख़ोज हल


ए कुमार

अब तू टल

कुमार अहमदाबादी

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मीठी वाणी क्यों?

  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी