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शनिवार, जुलाई 15

गुजराती मुक्तक और भावानुदित मुक्तक

 મુક્તક

દ્વેષનું હળાહળ છે પ્રેમની કટોરી છે

ઓ જમાના! તારી આ કેવી કિન્નાખોરી છે

વાસનાનો આ ભારો, શ્વાસના ભરોસા પર?

કોણ દિલને સમજાવે, દમ વિનાની દોરી છે

શૂન્ય પાલનપુરી


भावानुवादित मुक्तक

द्वेष का हलाहल है प्रेम की कटोरी है

विश्व तेरी ये हरकत एकदम छिछोरी है

बोझ वासना का है सांस के भरोसे पर

कौन ये कहे मन को टूटी प्रेम डोरी है 

कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी