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सोमवार, जुलाई 17

पूर्व प्राथमिक शिक्षा कितनी जरुरी है?–02 (अनुदित लेख)

अनुवादक – महेश सोनी

बचपन के प्रथम पांच वर्ष बच्चे के व्यक्तित्व के विकास के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चा उन पांच वर्षों के दौरान प्रति पल कुछ न कुछ सीखता है। हर घड़ी वो कुछ न कुछ शिक्षा प्राप्त करता है। उस के विकास की गति बहुत तेज होती है। बाल मनोविज्ञानीयों का मानना है कि इंसान जन्म से लेकर मृत्यु तक जितना सीखता है। उस में से आधा तो तीन वर्ष की आयु तक सीख लेता है। मनुष्य हिलना डुलना, भाषा, स्वभाव, वृत्तियां बर्ताव आदि जीवन के पहले तीन वर्षों में सीख जाता है। हालांकि तब वो शारीरिक रुप से पूर्ण विकसित नहीं होता। बच्चा उम्र के चौथे वर्ष तक शरीर के स्नायु यानि की मांसपेशियों को सही तरीके से चलाना नहीं सीखता। उसे सही तरीके से संकलित करना नहीं आता। पेन या पेंसिल पकड़कर लिखने के लिये उस के हाथ तैयार नहीं होते। उस समय उस से जबरदस्ती लिखवाने से एक खतरा रहता है। जीवनभर वो स्वच्छ व सुंदर अक्षरों में लिख नहीं सकता। उस की लिखावट जीवनभर खराब रहती है। उस उमर में बच्चे कपड़े पहन सकता है। लेकिन बटन सही तरीके से बंध नहीं कर सकता। वो जूते के फीते सही तरीके से बांध नहीं सकता। वो छोटे छोटे स्नायुओं पर आयु के पांचवें वर्ष में नियंत्रण प्राप्त करता है। पांच वर्ष का होते होते वो शारीरिक रुप से स्वतंत्र हो जाता है। वो अपनी दैनिक क्रियाओं के लिये निर्भर नहीं रहता। जैसे पहले होता है। उदाहरण देखें तो, पहले पहले कपड़े भी माता पिता या काका बुआ आदि पहनाते हैं। 

इसलिये पांच वर्ष पूरे होने से पहले बच्चे का विधिवत शिक्षण शुरु नहीं होना चाहिये। ये ही वो कारण है। बच्चों को पहली कक्षा में प्रवेश की आयु मर्यादा पांच वर्ष पूरे होने के बाद की तय की गयी है। 

लेकिन माता पिता ये अपेक्षाएं रखने लगे हैं। उन का बच्चा नर्सरी या बालमंदिर यानि से ही पेन पकड़कर लिखने लगे या किताब को हाथ में रखकर पढ़ने लगे। कई माता–पिता शिक्षकों को ये कहते हैं कि "हमारे बच्चे को लिखना पढ़ना क्यों नहीं आता?" लेकिन ये एकदम गलत अवैज्ञानिक दृष्टिकोण है। सही बात ये है; आयु के प्रथम पांच वर्षों के दौरान बच्चे का सही व पूर्ण विकास माता पिता की मीठी प्रेम दृष्टि की छत्रछाया में ही होता है। 

हिम्मतभाई महेता लिखित पुस्तक  "बाल्यावस्था व कुमारावस्था की शिक्षा समस्याएं" (प्रकाशक –बालविनोद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित) किताब के पहले प्रकरण "पूर्व प्राथमिक शिक्षण केटलुं जरुरी?" के कुछ पेरेग्राफ का अनुवाद

अनुवादक – महेश सोनी

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