स्त्री सिंगार क्यों करती है
जरूरी है दीवानाओ प्रशंसा रूप नी करवा
सलामो चांद ने भरवा सिताराओ जरूरी छे
किस्मत कुरैशी
हिंदी फिल्मी गीत 'घूंघट की आड़ से..' में शब्द हैं "जब तक न पड़े आशिक की नजर सिंगार अधूरा रहता है". स्त्री सिंगार किस के लिए करती है? वो अपने पति की अपने साथी की प्रशंसा को पाने के लिए सिंगार करती है. प्रशंसा करने वाले न होते तो सौंदर्य किस से प्रतिभाव प्राप्त करता? किस के लिए सिंगार करता? यूं तो स्त्री स्वयं सौंदर्य की परिभाषा है. तो फिर वो सिंगार क्यों करती है? दरअसल वो अपने कुदरती सौंदर्य को और ज्यादा सुंदर बल्कि सुंदरतम बनाने के लिए सिंगार करती है. जैसे कवि कविता लिखने के लिए परमात्मा विशेष गुण देता है. कवि फिर क्या करता है? परमात्मा के दिए गुण को निखारने के लिए, ज्यादा असरकारक बनाने के लिए कविता लिखने की विभिन्न तकनीक सीखता है. कोई दोहों की, कोई छप्पों की, कोई रुबाई की, कोई गजलों की या कोई किसी और तकनीक को सीखता है. इस से परमात्मा द्वारा मिले गुण का प्रभाव अनेक गुना हो जाता है.
ईसी तरह स्त्री द्वारा सिंगार किए जाने पर स्त्री को मिले कुदरती सौंदर्य में अनेक गुना वृद्धि हो जाती है. लेकिन ये वृद्धि तब मायने रखती है या यूं कहो सार्थक हो जाती है. जब स्त्री का साथी उस के सौंदर्य की प्रशंसा करता है.
अगर आसमान में चांद अकेला होता तो शायद उतना खूबसूरत ना लगता. जितना सितारों के होने से लगता है. सितारे एक तरह से चांद का सिंगार है. उसी तरह स्त्री चांद है. उस की प्रशंसा वो सितारे हैं. जो चांद के सौंदर्य को चार चांद लगा देते हैं.
कुमार अहमदाबादी
ता.15-04-2012 के दिन गुजराती वर्तमान पत्र जयहिंद में छपा लेख परिमार्जन के बाद.
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